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स्थिर मुद्रा क्या है

स्थिर मुद्रा क्या है

अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 81.71 प्रति डॉलर पर अपरिवर्तित बंद

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 81.69 पर खुला। कारोबार के दौरान यह 81.44 के उच्चस्तर और 81.71 के निचले स्तर तक गया। अंत में रुपया मात्र एक पैसे की गिरावट के साथ 81.71 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।

अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया बृहस्पतिवार 23 पैसे की बढ़त के साथ 81.70 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।

बीएनपी पारिबा बाई शेयरखान में अनुसंधान विश्लेषक अनुज चौधरी ने कहा कि डॉलर की विनियम दर में गिरावट के बीच घरेलू शेयर बाजार में मजबूती से रुपया चढ़ा। विदेशी निवेशकों की लिवाली से भी घरेलू मुद्रा को समर्थन मिला।

रिलायंस सिक्योरिटीज के वरिष्ठ शोध विश्लेषक, श्रीराम अय्यर ने कहा, ‘‘आयातकों की डॉलर की मांग के बीच शुक्रवार को भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले मामूली कमजोर बंद हुआ। सप्ताह के दौरान, कमजोर डॉलर इंडेक्स के कारण आयातकों की मासांत डॉलर मांग से नुकसान की भरपाई होने से रुपये में मामूली गिरावट आई।’’

अय्यर ने कहा कि घरेलू स्तर पर, भारत की सितंबर तिमाही के जीडीपी आंकड़े अगले सप्ताह आने वाले हैं और घरेलू बाजारों के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा निर्धारक साबित होंगे।

इस बीच, दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कमजोरी या मजबूती को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.11 प्रतिशत की गिरावट के साथ 105.96 पर आ गया।

वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 1.70 प्रतिशत चढ़कर 86.79 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया।

बंबई शेयर बाजार का 30 शेयरों पर आधारित सूचकांक 20.96 अंक की तेजी के साथ 62,293.64 अंक पर बंद हुआ।

शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने शुक्रवार को 369.08 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर ख़रीदे।

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

इन सवाल-जवाब में रुपए के कमजोर होने से जुड़ा वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं

डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य मुद्रा का मूल्य घटे तो इसे उस मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रीशिएशन। ऐसा ही कुछ तीन दिन पहले 28 जून स्थिर मुद्रा क्या है को रुपए के साथ हुआ है। डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा अब तक के सबसे निचले स्तर पर जा पहुंची। एक डॉलर का मूल्य 69.10 रुपए हो गया। पहली बार डॉलर का भाव 69 रुपए से अधिक हुआ। वैसे, रुपए ने इससे पहले अपना सबसे निचला स्तर नवंबर 2016 में देखा था। तब डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य 68.80 हो गया था।

आखिर कौन तय करता है रुपए का मूल्य?
हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है। अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर है तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं, जिसे भारत ने 1975 से अपनाया है।

इसे ऐसे समझें.
अमेरिका के पास 69,000 रुपए हैं और हमारे पास 1,000 डॉलर। डॉलर का भाव 69 रुपए है, तो दोनों के पास बराबर धनराशि है। अब अगर हमें अमेरिका से कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,900 रुपए है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे। अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में बचे 900 डॉलर। जबकि, अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 69000 रुपए थे, वो तो हैं ही, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में जो 100 डॉलर थे वो भी उसके पास चले गए। संतुलन बनाने के लिए जरूरी है कि भारत भी अमेरिका को 100 डॉलर का सामान बेचे। मगर जितना माल हम डॉलर चुकाकर आयात करते हैं, उतना निर्यात नहीं करते। इसलिए डॉलर का मूल्य रुपए की तुलना में लगातार बढ़ता जा रहा है।

पूरी दुनिया में एक जैसा करेंसी एक्सचेंज सिस्टम
फॉरेक्स (फॉरेन एक्सचेंज)मार्केट में रुपए के बदले विभिन्न देशों की मुद्राओं की लेन-देन की दर तय होती है। डॉलर के मुकाबले यदि रुपए में घट-बढ़ होती है तो इसका सीधा असर फॉरेक्स मार्केट पर दिखता है, क्योंकि इसी के आधार पर देश के लोग विदेशी बाजारों से लेन-देन करते स्थिर मुद्रा क्या है हैं। साथ ही सबसे पहले निर्यातक और आयातक प्रभावित होते हैं। हर देश के अपने फॉरेक्स मार्केट होते हैं, लेकिन सभी एक ही तरह से काम करते हैं। इसके अलावा तीन और बाजार होते हैं-

कैपिटल मार्केट: इसमें इक्विटी की खरीदी बिक्री होती है।

फाइनेंशियल मार्केट: बॉन्ड, डेब्ट फंड्स का लेन-देन।

कॉल मनी मार्केट: बैंक जरूरत पड़ने पर आपस में रुपए का लेन-देन करते हैं। ब्याज दर आरबीआई तय करता है।

में बराबर थे डॉलर और रुपया

रुपया आजादी से स्थिर मुद्रा क्या है पहले डॉलर के मुकाबले मजबूत था। असल में तब सभी अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं का मूल्य सोने-चांदी से तय होता था। इसके बाद ब्रिटिश पाउंड और विश्व युद्धों के बाद से अमेरिकी डॉलर उस भूमिका में है। वैसे आजादी के बाद यानी 1948 में एक डॉलर-1.3 रुपए के बराबर ही था। 1975 में डॉलर का मूल्य 8.39 रु., 2000 में 43.5 रु. हो गया। 2011 में इसने पहली बार 50 का आंकड़ा पार किया।

करेंसी डॉलर-बेस्ड ही क्यों और कब से?
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। इसके पीछे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ ‘ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट’ है। इसमें एक न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। हालांकि तब अमेरिका अकेला ऐसा देश था, जो अार्थिक तौर पर मजबूत होकर उभरा था। ऐसे में अमेरिकी डॉलर को दुनिया की रिजर्व करेंसी के तौर पर चुन लिया गया। युद्ध के बाद बड़े देशों की करेंसी का एक्सचेंज रेट तय किया गया। हालांकि उस वक्त सोने में लेन-देन होता था। 1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अचानक डॉलर के बदले गोल्ड एक्सचेंज पर रोक लगा दी। आज दुनियाभर में केंंद्रीय बैंकों की विदेशी मुद्रा का 64% डॉलर ही है।

गिर क्यों रही है भारतीय मुद्रा?
रुपए की कमजोरी की वजहें समय के हिसाब से बदलती रही हैं। कभी राजनीतिक हालात से तो कभी वैश्विक या अमेरिका के आर्थिक हालात से। वर्तमान में दोनों हालात जिम्मेदार हैं।

अमेरिकी अर्थव्यवस्था 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी के एक दशक बाद अब पटरी पर है। इस साल उसकी विकास दर करीब तीन फीसदी रहने का अनुमान है। इसके अलावा इस साल फेडरल रिजर्व बैंक ने ब्याज दर को दूसरी बार बढ़ाते हुए दो फीसदी कर दिया है। इन दो वजहों से निवेशक भारत और दुनिया के दूसरे देशों से अपना निवेश निकालकर अमेरिका ले जाने लगे हैं और वहां बॉन्ड में निवेश कर रहे हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर की मांग कम नहीं हो रही।

कच्चा तेल तीन हफ्तों में 6 डॉलर सस्ता होकर 73 डॉलर प्रति बैरल तक आया है। मगर जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात करने वाले भारत के लिए यह भाव भी काफी ज्यादा है। हमें तेल के बदले ज्यादा डॉलर चुकाने पड़ रहे हैं। असल में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल की वजह राजनीतिक भी है। अमेरिका ने ईरान से परमाणु समझौता तोड़कर उस पर फिर प्रतिबंध लगा दिया है। वेनेजुएला में आर्थिक संकट गहरा चुका है। इससे कच्चे तेल का वैश्विक उत्पादन और निर्यात प्रभावित हुआ है।

कहां नुकसान या फायदा?

नुकसान: कच्चे तेल का आयात महंगा होगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी। देश में सब्जियां और खाद्य पदार्थ महंगे होंगे। वहीं भारतीयों को डॉलर में पेमेंट करना भारी पड़ेगा। यानी विदेश घूमना महंगा होगा, विदेशों में पढ़ाई महंगी होगी।

फायदा: निर्यात करने वालों को फायदा होगा, क्योंकि पेमेंट डॉलर में मिलेगा, जिसे वह रुपए में बदलकर ज्यादा कमाई कर सकेंगे। इससे विदेश में माल बेचने वाली आईटी और फार्मा कंपनी को फायदा होगा।

कैसे संभलती है स्थिति?

मुद्रा की कमजोर होती स्थिति को संभालने में किसी भी देश के केंद्रीय बैंक का अहम रोल होता है। भारत में यह भूमिका रिजर्व बैंक अॉफ इंडिया की है। वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार से और विदेश से डॉलर खरीदकर बाजार में उसकी मांग पूरी करने का प्रयास करता है। इससे डॉलर की कीमतें रुपए के मुकाबले स्थिर करने में कुछ हद तक मदद मिलती है।

भारतीय इकोनॉमी के लिए गुड न्यूज, विदेशी निवेशकों ने नवंबर में जमकर किया निवेश

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का भारतीय शेयर बाजारों में आक्रामक लिवाली का सिलसिला जारी है. नवंबर में अब तक उन्होंने शेयरों में 30,385 करोड़ रुपये का निवेश किया है.

भारतीय इकोनॉमी के लिए गुड न्यूज, विदेशी निवेशकों ने नवंबर में जमकर किया निवेश

TV9 Bharatvarsh | Edited By: राघव वाधवा

Updated on: Nov स्थिर मुद्रा क्या है 20, 2022 | 3:24 PM

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का भारतीय शेयर बाजारों में आक्रामक लिवाली का सिलसिला जारी है. नवंबर में अब तक उन्होंने शेयरों में 30,385 करोड़ रुपये का निवेश किया है. भारतीय रुपये के स्थिर होने और दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत होने की वजह से विदेशी निवेशक एक बार फिर भारत पर दांव लगा रहे हैं.

जानकारों ने क्या बताई वजह?

जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि आगे चलकर एफपीआई का रुख बहुत आक्रामक नहीं रहेगा, क्योंकि ऊंचे मूल्यांकन की वजह से वे अधिक लिवाली से बचेंगे. उन्होंने कहा कि इस समय चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान के बाजारों में मूल्यांकन काफी आकर्षक है और एफपीआई का पैसा उन बाजारों की ओर जा सकता है.

डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक, 1 से 18 नवंबर के दौरान एफपीआई ने शेयरों में शुद्ध रूप से 30,385 करोड़ रुपये डाले हैं. इससे पहले पिछले महीने यानी अक्टूबर में उन्होंने भारतीय बाजारों से शुद्ध रूप से आठ करोड़ रुपये निकाले थे. सितंबर में उन्होंने 7,624 करोड़ रुपये की निकासी की थी. सितंबर से पहले अगस्त में एफपीआई ने 51,200 करोड़ रुपये की खरीदारी की थी. वहीं, जुलाई में वे 5,000 करोड़ रुपये के लिवाल रहे थे. इससे पहले पिछले साल अक्टूबर से लगातार नौ महीने तक एफपीआई बिकवाल बने रहे थे.

शेयर बाजार में तेजी का मिला फायदा

मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि एफपीआई के हालिया निवेश की वजह भारतीय शेयर बाजारों में तेजी, अर्थव्यवस्था में स्थिरता और अन्य मुद्राओं की तुलना में रुपये की स्थिति बेहतर रहना है. उन्होंने कहा कि वैश्विक मोर्चे पर बात की जाए, तो अमेरिका में महंगाई अनुमान से कम बढ़ी है, जिससे यह संभावना बनी है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में आक्रामक तरीके से बढ़ोतरी नहीं करेगा. इससे धारणा में सुधार हुआ है और भारतीय बाजार में एफपीआई का निवेश बढ़ा है.

हालांकि, समीक्षाधीन अवधि में एफपीआई ने ऋण या बॉन्ड बाजार से 422 करोड़ रुपये निकाले हैं. इस महीने में भारत के अलावा फिलिपीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान और थाइलैंड के बाजारों में भी एफपीआई का प्रवाह सकारात्मक रहा है. आपको बता दें कि स्थानीय शेयर बाजारों की दिशा इस हफ्ते वैश्विक रुख और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के प्रवाह से तय होगी. विश्लेषकों ने यह राय जताते हुए कहा कि इस हफ्ते घरेलू मोर्चे पर कोई बड़ा आंकड़ा नहीं आना है.

हर रोज सुबह टाॅयलेट में लगता है बहुत ज्यादा समय, तो ये आसन दिला सकता है आपको कब्ज से राहत

खानपान की दिक्कतों के कारण कब्ज की समस्या आम है। यदि आपको भी सुबह बोवेल मूवमेंट सही नहीं होने की समस्या है, तो अपनी एक्सरसाइज रूटीन में शामिल करें भुजंगासन को। एक्सपर्ट बताएंगे इसे करने का सही तरीका।

cobra pose

भुजंगासन से कब्ज को दूर कर (cobra pose for constipation) बोवेल मूवमेंट सही किया जा सकता है। चित्र शटरस्टॉक।

बढ़िया स्वास्थ्य के लिए जिस तरह स्वस्थ खानपान जरूरी है, उसी तरह बोवेल मूवमेंट का सही होना भी जरूरी है। सुबह में यदि पेट साफ़ हो स्थिर मुद्रा क्या है जाता है दिन भर मन में ताजगी और शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। वजन भी नियंत्रित रहता है और शरीर स्वास्थ्य समस्याओं से भी दूर रहता है। वहीं दूसरी ओर कब्ज रहने पर मन के साथ-साथ शरीर भी समस्याओं और रोगों से घिरने लगता है। कब्ज दूर करने के स्थिर मुद्रा क्या है लिए हम सबसे पहले होम रेमेडीज का सहारा लेते हैं। पर क्या आप जानती हैं कि योगासन से भी कब्ज दूर किया जा सकता है। भुजंगासन से कब्ज को दूर कर (cobra pose for constipation) बोवेल मूवमेंट सही किया जा सकता है।

भुजंगासन से क्या-क्या फायदे मिल सकते हैं और इसे करने का सही तरीका क्या है, इसके लिए हमने बात की योग एक्सपर्ट अमित खन्ना से।

जानिए क्यों खाास है भुजंगासन (Cobra Pose)

अमित खन्ना बताते हैं, ‘भुजंग शब्द से बना है भुजंगासन। इसका अर्थ है सांप जैसा आसन या मुद्रा। आपने कोबरा सांप को फन फैलाए हुए देखा होगा। इसलिए यह स्थिर मुद्रा क्या है कोबरा स्ट्रेच के नाम से भी जाना जाता है। सूर्यनमस्कार में भी यह आसन या मुद्रा शामिल होती है। यदि आप बहुत अधिक थकान महसूस कर रही हैं या तनाव में हैं, तो इस आसन को करने के बाद आप हल्का महसूस करेंगी। इसे बीएस पेट के बल लेट कर करना होता है। यह पूरे शरीर को स्ट्रेच कर देता है, जिससे थकान दूर हो जाती है।’ इस आसन को करने में बहुत कम समय स्थिर मुद्रा क्या है लगता है। इसलिए खाली पेट कभी-भी कर सकती हैं।

यहां जानिए भुजंगासन करने का सही तरीका

पेट के बल लेटना है पहला स्टेप

सबसे पहले पेट के बल लेट जाएं। पैरों को सीधा और लंबा फैला लें।
हथेलियों को कंधों के नीचे जमीन पर रखें। शरीर को ढीला छोड़ दें।
सांस लेते हुए कंधों को जमीन से ऊपर उठायें
अब सांस लेते हुए सिर और कंधों को जमीन से ऊपर उठायें। सिर को जितना पीछे ले जा सकती हैं, ले जाएं।
जितना संभव हो सके, पीठ को भी पीछे की ओर झुकाती जाएं। कोहनियों को भी स्ट्रेट कर लें।

cobra pose

सिर को नाभि से ऊपर उठाने का प्रयास करें। चित्र- शटर स्टॉक

सिर को नाभि से ऊपर उठाने का प्रयास करें।
सांस पर नियन्त्रण जरूरी है कि सांस अंदर रोक लें और इस स्थिति में कुछ देर तक रहें।
सांस छोड़ते हुए नीचे आयें।
इस आसन को 5 बार किया जा सकता है।

अब जानिए क्या हैं पेट के लिए भुजंगासन के फायदे ( cobra pose benefits)

शरीर को स्ट्रेचिंग में मददगार होने के कारण भुजंगासन यह आसन पेट के सभी अंगों खासकर आंतों, लिवर, किडनी के लिए भी लाभदायक है। यदि पीरियड के दौरान तेज़ दर्द होता है या अनियमित पीरियड होता है, तो यह आसन राहत स्थिर मुद्रा क्या है दिलाता है। इस आसन से सामान्य पीठ दर्द की समस्या से राहत मिल जाती है।

cobra pose sehat ke lihaj se kafi faydemand hai

इसे नियमित रूप से करने पर आपका बोवेल मूवमेंट भी सही हो जाएगा और कब्ज से राहत मिलने में मदद भी। यदि पेट में किसी भी प्रकार का घाव है या किसी प्रकार की समस्य है, तो यह आसन योग प्रशिक्षक की देख-रेख में ही करें।

किसी वजह से नहीं कर पा रहीं हैं भुजंगासन, तो याद रखें

यदि आपको शुरुआत में भुजंगासन करने में दिक्कत होती है तो स्फिंक्स की आकृति की तरह आसन कर सकती हैं। यह भुजंगासन का शुरूआती स्टेप है।

कैसे करें
भुजंगासन की तरह पेट के बल लेट जाएं। अपनी दोनों कोहनी को कंधों के नीचे रखें।
हथेली फर्श को स्पर्श करनी चाहिए। सांस लेते हुए हथेलियों को स्थिर रखते हुए केहुनी को सीधा करें। पीठ को मोड़ें और सिर को पीछे करते हुए ऊपर देखें।
सांस को कुछ देर रोकें। इस अवस्था में कुछ देर तक रूकें। सांस छोड़ते हुए पहली वाली स्थिति में आ जाएं।

लेखक के बारे में
स्मिता सिंह

स्वास्थ्य, सौंदर्य, रिलेशनशिप, साहित्य और अध्यात्म संबंधी मुद्दों पर शोध परक पत्रकारिता का अनुभव। महिलाओं और बच्चों से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करना और नए नजरिए से उन पर काम करना, यही लक्ष्य है।

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