मुख्य व्यापारिक स्थिति

भारत में व्यापार शुरू करना
एक बिलियन से भी अधिक जनसंख्या वाला भारतीय बाजार उचित उत्पादों, सेवाओं और प्रतिबद्धताओं वाले अमेरिकी निर्यातकों के लिए आकर्षक और विविध अवसर मुहैया कराता है। भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण और विस्तार होने से मध्यावधि में भारत की ऊर्जा, पर्यावरण, स्वास्थ्य देखरेख, मुख्य व्यापारिक स्थिति उच्च-प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढांचे, परिवहन और रक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में उपकरणों और सेवाओं की आवश्यकताएं दसियों बिलियन डॉलर से भी अधिक होगी। उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान भारत का सकल घरेलू उत्पाद विकास दर 7.6 प्रतिशत थी। सरकार द्वारा नीतियों का उदारीकरण जारी रखने की संभावना के साथ, भारत के पास आगामी कुछ वर्षों तक सतत उच्च विकास दर कायम रखने की क्षमता है और अमेरिकी कंपनियों को विकसित होते भारतीय बाजार में प्रवेश के अवसर को अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
अमेरिका-भारत व्यापार
कैलेंडर वर्ष 2015 में भारत के लिए अमेरिकी निर्यातः 39.7 बिलियन डॉलर
कैलेंडर वर्ष 2015 में भारत से आयातः 69.6 बिलियन डॉलर
कैलेंडर वर्ष 2015 में कुल द्विपक्षीय व्यापार (माल और सेवाएं) 109.3 बिलियन डॉलर
कुल व्यापारः कैलेंडर वर्ष 2015 में कुल द्विपक्षीय व्यापार 109.3 बिलियन डॉलर, 2014 से 3.6 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई।
कैलेंडर वर्ष 2015 में भारत को अमेरिकी निर्यात बढ़कर 39.7 बिलियन डॉलर, पहले के साल के मुकाबले 5.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
कैलेंडर वर्ष में भारत से आयात बढ़कर 69.6 बिलियन डॉलर हो गया, पहले के साल के मुकाबले 2.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
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कंट्री कमर्शियल गाइड
भारत की कंट्री कमर्शियल गाइड (सीसीजी) अमेरिकी उद्यमियों के लिए भारत में निर्यात और निवेश अवसरों की खोज करके एक उपयोगी आरंभिक जानकारी प्रदान करता है। सीसीजी भारत में अमेरिकी दूतावास के विस्तृत दस्तावेज के में तैयार है जो वार्षिक रूप से प्रकाशित होता है। यह भारत के आर्थिक रुझानों और रूपरेखा, राजनीतिक वातावरण; व्यापार लिनयम, परंपराओं और मानकों; बिजनेस ट्रैवल; और आर्थिक व व्यापार आंकड़ों की जानकारी प्रदान करता है। यह भारत में अमेरिकी उत्पादों और सेवाओं की मार्केटिंग, अमेरिकी निर्यात व निवेश के लिए प्रमुख भारतीय औद्योगिक क्षेत्रों; अमेरिकी निर्यातकों के लिए व्यापार और परियोजना की वित्तीय सहायता और अमेरिकी व भारतीय उद्यमियों के संपर्क की जानकारी भी प्रदान करता है।
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भारत में व्यापार किस प्रकार करें
तेजी से बढ़ते मध्य वर्ग, आय बढ़ने और महंगे कृषि उत्पादों के उपभोग का तरीका बदलने से अमेरिकी कृषि के बड़े स्तर पर भारत में निर्यात बढ़ने की संभावनाएं हैं। भारत में आधुनिक फुटकर क्षेत्र का विस्तार हो रहा है, खाद्य प्रसंस्करणकर्ता वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में प्रवेश चाहते हैं, और खाद्य सेवा के सेफ नए प्रयोग करना चाहते हैं एवं नए उत्पादों और वैश्विक व्यंजनों को चखने के इच्छुक युवाओं व उच्च आय वाले उपभोक्ताओं को आकर्षित करना चाहते है। भारतीय बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के इच्छुक निर्यातकों को पहले यह पता लगाना चाहिए कि क्या उस उत्पाद की बाजार तक पहुंच हैं और छोटे स्तार शुरुआत करने तथा विशिष्ट लेबलिंग एवं पैकेजिंग आवश्यकताओं को पूरा करने लिए तैयार रहना चाहिए।
महत्वपूर्ण रिपोर्टें:
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दूतावास फोनः 24198000
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सबसे पहले 011-91-11- डायल करें
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बाहर से फोन कर रहे हैं तो
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रॉबर्ट जे. गारवेरिक, आर्थिक, पर्यावरण, विज्ञान व प्रौद्योगिकी मामलों के मिनिस्टर काउंसिलर
स्कॉट एस सिंडलर, कृषि मामलों के मिनिस्टर काउंसिलर
जॉन मैक्कैसलिन, वरिष्ठ वाणिज्यिक अधिकारी व वाणिज्यिक मामलों के मिनिस्टर काउंसिलर
भारत सरकार
विदेश व्यापार (उत्तर पूर्वी एशिया) प्रभाग का कार्य चीन जनवादी गणराज्य, हांगकांग, ताइवान, जापान, कोरिया गणराज्य, कोरिया लोकतांत्रिक जनवादी गणराज्य, मकाओ तथा मंगोलिया अर्थात उत्तर पूर्वी एशिया क्षेत्र के साथ भारत के व्यापार एवं आर्थिक सहयोग से संबंधित सभी क्षेत्रीय मामलों को देखना है।
ड्यूटी में मुख्य व्यापारिक स्थिति संस्थानिक तंत्रों जैसे कि आर्थिक संबंध, व्यापार, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर संयुक्त समूह (जेईजी) / चीन के साथ संयुक्त कार्य समूह (जेडब्ल्यूजी), भारत – जापान सीईपीए तथा भारत – कोरिया सीईपीए के तहत संयुक्त समितियों एवं उप समितियों के माध्यम से तथा इन देशों के साथ अनौपचारिक बैठकों, वार्ता एवं परामर्श का आयोजन करके व्यापार एवं आर्थिक सहयोग पर इन देशों के साथ भागीदारी शामिल है।
कार्य में समय समय पर इन देशों एवं क्षेत्रों के संबंध में व्यापार सांख्यिकी का संग्रहण, संकलन एवं विश्लेषण तथा व्यापार एवं आर्थिक सहयोग पर इन देशों में भारतीय मिशनों के साथ चर्चा भी शामिल है।
क्षेत्र की व्यापार सांख्यिकी (एनईए क्षेत्र)
उत्तर पूर्वी एशिया जिसमें चीन, जापान, कोरिया गणराज्य, हांगकांग, ताइवान आदि आते हैं, के साथ 2015-16 में द्विपक्षीय व्यापार का मूल्य 124.95 बिलियन अमरीकी डालर था जो भारत के कुल व्यापार का 19.42 प्रतिशत है। एनईए देशों को निर्यात का मूल्य 30.84 बिलियन अमरीकी डालर था, जो भारत के कुल निर्यात का 11.76 प्रतिशत है तथा एनईए देशों से आयात का मूल्य 94.11 बिलियन अमरीकी डालर था जो भारत के कुल आयात का 24.7 प्रतिशत है। एनईए देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा 2015-16 में 63.28 बिलियन अमरीकी डालर था जो भारत के कुल व्यापार घाटे (118.72 बिलियन अमरीकी डालर) का 53.3 प्रतिशत है।
एनईए के साथ कुल व्यापार में चीन का हिस्सा 56.6 प्रतिशत है, जबकि हांगकांग, जापान और कोरिया ने क्रमश: 14.5 प्रतिशत, 11.6 प्रतिशत और 13.3 प्रतिशत का योगदान किया। ताइवान, मंगोलिया, मकाऊ और कोरिया लोकतांत्रिक जनवादी गणराज्य ने शेष 4 प्रतिशत का योगदान किया। भारत के कुल व्यापार में चीन का हिस्सा 10.99 प्रतिशत है, जबकि हमारे कुल व्यापार घाटे में इसका हिस्सा 44.38 प्रतिशत है।
व्यापार के अलावा एनईए देश एक साथ मिलकर इस समय 4233 बिलियन अमरीकी डालर के कुल निर्यात और 3548.7 बिलियन अमरीकी डालर के आयात तथा 7781 बिलियन अमरीकी डालर के कुल व्यापार के साथ विश्व में सबसे प्रभावशाली आर्थिक खिलाडि़यों में हैं। मुख्य व्यापारिक स्थिति उच्च विकास दर के साथ चीन, कोरिया, ताइवान और हांगकांग अग्रणी अर्थव्यवस्था हैं; वे भारत के लिए महत्वपूर्ण निवेश साझेदार हो सकते हैं। एनईए देशों के साथ भागीदारी भारत की ‘पूरब में काम करो नीति’ का भी अभिन्न अंग है जिसके तहत उत्तरी अमेरिका और यूरोप के परंपरागत क्षेत्रों से आगे भारत की आर्थिक भागीदारी का विस्तार करने का प्रयास किया जाता है। 2010-11 से 2015-16 के दौरान उत्तर पूर्व एशिया के देशों के साथ व्यापार को सारणी में दर्शाया गया है :
सारणी 1 : उत्तर पूर्वी एशियाई देशों के साथ व्यापार
(मूल्य मिलियन अमरीकी डालर में)मुख्य व्यापारिक स्थिति
वर्ष | निर्यात | आयात | कुल व्यापार | व्यापार संतुलन |
---|---|---|---|---|
2010-11 | 37,315.76 | 76,109.73 | 1,13,425.50 | (-) 38,793.97 |
2011-12 | 45,349.59 | 94,883.00 | 1,40,232.59 | (-) 49,533.41 |
2012-13 | 39,437.08 | 89,907.33 | 1,29,344.40 | (-) 50,470.25 |
2013-14 | 40,816.49 | 84,372.93 | 1,25,189.41 | (-) 43,556.44 |
2014-15 | 37,788.22 | 93,812.80 | 1,31,601.02 | (-) 56,024.58 |
2015-16 | 30,835.10 | 94,110.44 | 1,24,945.54 | (-) 63,275.34 |
2017 में नियोजित मौजूदा गतिविधियां
भारत – कोरिया सीईपीए समीक्षा वार्ता शुरू हो चुकी है
चीन के साथ मंत्री स्तर पर संयुक्त आर्थिक समूह की 11वीं बैठक की योजना मुख्य व्यापारिक स्थिति बनाई गई है
ताइवान के साथव संयुक्त कार्य समूह की बैठक की योजना बनाई गई है
भारत – जापान सीईपीए के तहत सचिव स्तर पर संयुक्त समिति की चौथी बैठक
भारत तथा कोरिया गणराज्य के बीच एक व्यापक आर्थिक भागीदारी करार (सीईपीए) पर 7 अगस्त, 2009 को हस्ताक्षर किये गये थे। सीईपीए 1 जनवरी 2010 से प्रभावी हुआ तथा इस समय इसके उन्नयन के लिए वार्ता चल रही है।
भारत और जापान के बीच एक व्यापक आर्थिक भागीदारी करार (सीईपीए) पर हस्ताक्षर 16 फरवरी, 2011 को किए गए थे। यह करार 1 अगस्त, 2011 से प्रवृत्त हुआ है।
व्यापार मुख्य व्यापारिक स्थिति संवर्धन की गतिविधियों में विदेशों में / एनईए देशों में आयोजित व्यापार मेलों एवं प्रदर्शनियों में उद्योगों के साथ व्यापार केन्द्रों / निर्यात संवर्धन परिषदों द्वारा भागीदारी शामिल है।
व्यापार को बढ़ावा देने एवं सुगम बनाने के लिए समय समय पर विभिन्न स्तरों पर द्विपक्षीय बैठकों का आयोजन करना।
जापान और दक्षिण कोरिया के साथ हस्ताक्षरित व्यापार करार निम्नलिखित लिंक पर वाणिज्य विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं :
भारत सरकार
यह प्रभाग उप सहारा अफ्रीका क्षेत्र (पूर्वी, पश्चिमी, मध्य एवं दक्षिणी) जिसमें अफ्रीका के 50 देश शामिल हैं, के संबंध में व्यापार संवर्धन, नीति, वार्ता तथा अन्य संबंधित गतिविधियों से संबंधित काम देखता है।
विदेश व्यापार (अफ्रीका) प्रभाग के अधिकारियों का ब्यौरा :
- श्री मनोज द्विवेदी : संयुक्त सचिव
- सुश्री हिमानी सरद : उप सचिव
- श्री टी एन प्रेम : अवर सचिव
- श्री सुधीर सिंह लांबा : अनुभाग अधिकारी
- सुश्री आशा किरन वर्मा : सहायक
2013-14 | 2014-15 | |
---|---|---|
निर्यात | 25.80 | 27.14 |
पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धि (प्रतिशत में) | 9.89 % | 5.20 % |
आयात | 31.53 | 34.75 |
पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धि (प्रतिशत में) | -8.36 % | 10.25 % |
कुल व्यापार | 57.32 | 61.89 |
पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धि (प्रतिशत में) | -0.96 % | 0.07 % |
(मूल्य बिलियन अमरीकी डालर में)(स्रोत : डीजीसीआई एंड एस)
भारत सरकार तथा अफ्रीका के विभिन्न देशों की सरकारों के बीच 19 व्यापार करार मौजूद हैं। इन व्यापार करारों की सूची विभाग की वेबसाइट [अंतर्राष्ट्रीय व्यापार > व्यापार करार > भारत – अफ्रीका व्यापार करार] पर उपलब्ध है
भारत – साकू पीटीए तथा भारत – कोमेसा पीटीए / एफटीए के लिए वार्ता की वर्तमान स्थिति ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार’ के तहत ‘व्यापार करार’ में ‘आरटीए में भारत की माजूदा भागीदारियां’ में विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
[ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार > व्यापार करार > आरटीए में भारत की मौजूदा भागीदारियां ]
अफ्रीका के चुनिंदा देशों में कॉटन एवं टेक्सटाइल क्षेत्र को सुदृढ़ करने के लिए कॉटन तकनीकी सहायता कार्यक्रम भारत सरकार की एक पहल है। मई 2011 में अदिस अबाबा में आयोजित भारत – अफ्रीका मंच की दूसरी शिखर बैठक के दौरान इस कार्यक्रम की घोषणा की गई तथा मार्च 2012 में नई दिल्ली में आयोजित दूसरी भारत – अफ्रीका व्यापार मंत्री बैठक के दौरान आधिकारिक तौर पर इसे लांच किया गया।
21 करोड़ रुपए की सहायता से अफ्रीका के चुनिंदा देशों अर्थात बुर्किना फासो, बेनिन, चाड, माले (कॉटन 4), मालावी, नाइजीरिया और युगांडा में कॉटन क्षेत्र के लिए तकनीकी सहायता कार्यक्रम (टीएपी) लांच किया गया तथा तीन वर्ष की अवधि (2011-14) में सफलतापूर्वक पूरा किया गया है।
अब तक 150 से अधिक प्रतिभागियों को कॉटन अनुसंधान एवं विकास, फसल पश्चात प्रथाओं, आधुनिक विस्तार प्रणालियों, कृषक फील्ड विद्यालयों, टेक्सटाइल एवं परिधान उद्योग का विकास आदि जैसे क्षेत्रों में विभिन्न प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण कार्यक्रमों में भारतीय संस्थाओं में प्रशिक्षित किया गया है। प्रतिभागियों में उच्च स्तरीय प्रासंगिक सरकारी अधिकारी, शोध वैज्ञानिक, विस्तार अधिकारी, ओटाई एवं डाउनस्ट्रीम उद्योग से प्रतिनिधि आदि शामिल थे।
कार्यक्रम के तहत कार्यान्वित की जा रही निम्नलिखित गतिविधियों से अवसंरचना एवं ज्ञान आधार का सृजन हुआ है और इनसे मूल्य श्रृंखला में ऊपर उठने तथा देश के किसानों एवं लोगों के लिए बेहतर प्रतिफल प्राप्त करने में लाभार्थी देशों को मदद मिलेगी :
नाइजीरिया और मालावी में कौशल विद्यालय उद्योग के लिए कुशल / प्रशिक्षित जनशक्ति प्रदान करते हैं
युगांडा में बायो पेस्टीसाइड लैब जैविक कॉटन को बढ़ावा देता है
बेनिन में ज्ञान क्लस्टर फसल पश्चात प्रौद्योगिकी / उद्योग का प्रदर्शन कर रहा है
प्रायोगिक आधार पर मालावी में मुख्य व्यापारिक स्थिति आईसीटी आधारित पेस्ट एवं डिजीज निगरानी प्रणाली
सभी प्रतिभागी देशों ने कार्यक्रम को हाथोंहाथ लिया है तथा इसकी सराहना की है।
विदेश व्यापार (अफ्रीका) प्रभाग के संबंध में सीपीआईओ के नाम, पदनाम और अन्य ब्यौरों में आरटीआई अधिनियम की धारा 4 (अनिवार्य प्रकटन) के तहत परिवर्तन हो सकता है :
- कमरा संख्या : 280
- फ़ोन : 23062863/510
16 नवंबर, 2015 की स्थिति के अनुसार
1910 में स्थापित दक्षिणी अफ्रीकी कस्टम यूनियन (साकू) विश्व में सबसे पुराना कस्टम यूनियन है तथा इसमें 5 देशों अर्थात बोत्सवाना, लेसोथो, नामीबिया, स्वाजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका का समूह शामिल है।
अभी तक वार्ता के पांच दौर आयोजित हो चुके हैं।
वार्ता के पहले दौर का आयोजन 5 और 6 अक्टूबर 2007 को प्रीटोरिया में हुआ तथा वार्ता के 5वें दौर का आयोजन नई दिल्ली में 7 और 8 अक्टूबर 2010 को हुआ।
दोनों पक्षों ने नामीबिया में भारतीय उच्चायोग में टैरिफ तरजीह अनुरोध की अपनी मुख्य व्यापारिक स्थिति अपनी सूचियों का आदान प्रदान किया।
भारत – साकू पीटीए पर वार्ता के 6वें दौर का आयोजन नामीबिया में होना है।
भारत और कोमेसा के बीच भारत – कोमेसा (पूर्वी एवं दक्षिणी अफ्रीका के लिए सामान्य बाजार) तरजीही व्यापार करार (एफटीए)
पूर्वी एवं दक्षिणी अफ्रीका के लिए सामान्य बाजार (कोमेसा) अफ्रीका का सबसे बड़ा आर्थिक समुदाय है जिसमें 19 सदस्य राज्य अर्थात बुरुंडी, कोमोरोस, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, डिजिबाउटी, मिस्र, इरीट्रिया, इथोपिया, केन्या, लीबिया, मेडागास्कर, मालावी, मारीशस, रुवांडा, सेशल्स, स्वाजीलैंड, सूडान, युगांडा, जांबिया और जिंबाब्वे शामिल हैं।
भारत और कोमेसा के बीच एफटीए की संभावना की जांच करने के लिए एक संयुक्त अध्ययन समूह (जेएसजी) का गठन किया गया है।
भारत – कोमेसा जेएसजी की पहली बैठक 30 और 31 जुलाई 2012 को लुसाका में हुई।
जेएसजी की पहली बैठक के दौरान यह निर्णय लिया गया कि भारत – कोमेसा जेएसजी एक संयुक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा जिसमें भारत सरकार तथा कोमेसा सचिवालय द्वारा विचार के लिए उसकी सिफारिशें होंगी।
कोमेसा पक्ष ने भारतीय पक्ष द्वारा प्रस्तावित जेएसजी रिपोर्ट की संरचना पर अपनी सहमति प्रदान की तथा कोमेसा के महासचिव ने जेएसजी रिपोर्ट का प्रारूप तैयार करने का अनुरोध किया जिसकी आगे चलकर कोमेसा के सदस्यों द्वारा जांच की जाएगी।
भारतीय पक्ष की ओर से अध्ययन संचालित करने तथा जेएसजी की रिपोर्ट पर काम करने के लिए विकासशील देशों के लिए अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (आरआईएस) को एजेंसी / ज्ञान साझेदार के रूप में चुना गया।
व्यापार में भारत पर हावी है चीन, जानिए आयात-निर्यात में असंतुलन के क्या हैं नुकसान?
चीन से आयात ज्यादा और निर्यात कम होता है. यही नहीं चीन हमसे ज्यादातर कच्चा माल खरीदता है और हमें तैयार उत्पाद निर्यात करता है. सीमा पर तनाव के बाजवूद वर्ष 2021 की जनवरी से जून तक पहली छमाही में भारत-चीन व्यापार में 62.7 फीसदी की जबरदस्त बढ़त हुई.
दिनेश अग्रहरि
- नई दिल्ली,
- 20 जुलाई 2021,
- (अपडेटेड 20 जुलाई 2021, 11:42 AM IST)
- चीन के पक्ष में झुका है द्विपक्षीय व्यापार
- यह असंतुलन फिलहाल दूर होने वाला नहीं
भारत से चीन का व्यापार सीमा पर तनाव के बावजूद बढ़ता जा रहा है. इसमें गौर करने की बात यह है कि यह व्यापार पूरी तरह से चीन के पक्ष में झुका हुआ है. चीन से आयात ज्यादा और निर्यात कम होता है. यही नहीं चीन हमसे ज्यादातर कच्चा माल खरीदता है और हमें तैयार उत्पाद निर्यात करता है. आइए जानते हैं कि यह असंतुलन किस तरह का है और इसे लेकर क्यों चिंता जताई जा रही है?
सीमा पर तनाव के बाजवूद वर्ष 2021 की जनवरी से जून तक पहली छमाही में भारत-चीन व्यापार में 62.7 फीसदी की जबरदस्त बढ़त हुई और यह 57.4 अरब डॉलर (करीब 4.28 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच गया. यह कोविड के पहले के दौर में वर्ष 2020 की पहली छमाही में हुए 44.72 अरब डॉलर के व्यापार से भी ज्यादा है.
यह बढ़त तब हुई जब भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों में भारी तनाव रहा. चीन के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम्स (GAC) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि पहली छमाही के दौरान भारत के चीन से आयात में 69.6 फीसदी और निर्यात में 60.4 फीसदी की बढ़त हुई है.
भारत का चीन को निर्यात साल 2020-21 में 1,57,201.56 करोड़ रुपये का था. दूसरी तरफ भारत का चीन से आयात साल 2020-21 में 4,82,495. 79 करोड़ रुपये का था.
गौर करने वाली बात ये भी है कि कोरोना काल में जब भारत का ओवरऑल इम्पोर्ट गिर रहा था, उस वक्त भी चीन से हो रहे इम्पोर्ट का आंकड़ा बढ़ रहा था. सरकार के मुताबिक, अप्रैल-नवंबर 2020 के बीच भारत के टॉप 5 इम्पोर्ट पार्टनर में चीन, अमेरिका, UAE, हांगकांग और सऊदी अरब रहे हैं.
गौरतलब है कि पूरे साल 2020 में भारत का चीन से व्यापार 87.6 अरब डॉलर का था. इसमें करीब 66.7 अरब डॉलर चीन से भारत को आयात था. इसके पहले साल 2019 में भारत ने चीन से सबसे ज्यादा इलेक्ट्रिक मशीनरी और इक्विपमेंट (20.17 अरब डॉलर) का आयात किया, इसके अलावा ऑर्गनिक केमिकल 8.39 अरब डॉलर, उर्वरक 1.67 अरब डॉलर भारत के शीर्ष आयात थे.
बदलाव की गुंजाइश कम
साल 2014-15 से 2019-20 के बीच के व्यापार के आंकड़े यह दिखाते हैं कि भारत कम मूल्य के कच्चे माल का निर्यात करता है, जबकि हाई वैल्यू वाले मैन्युफैक्चरिंग गुड्स का आयात करता है. दोनों देशों के बीच व्यापार में गहरी असमानता है. साल 2019-20 के बीच भारत का चीन को औसत सालाना निर्यात करीब 13 अरब डॉलर का रहा है. इसी तरह इस बीच भारत का चीन से औसत आयात 66 अरब डॉलर का रहा.
भारत से चीन को मछलियां, मसाले जैसे खाद्य वस्तुओं से लेकर लौह अयस्क, ग्रेनाइट स्टोन और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात होता है. दूसरी तरफ चीन से भारत को आयात इलेक्ट्रिक मशीनरी, इक्विपमेंट और अन्य मेकैनिकल अप्लायंसेज का होता है. इसमें निकट भविष्य में बदलाव की गुंजाइश भी कम दिख रही है.
इन चीजों का होता है चीन को निर्यात
पिछले छह साल में भारत से चीन का निर्यात मुख्य रूप से लौह अयस्क, पेट्रोलियम ईंधन, कार्बनिक रसायन, रिफाइंड कॉपर, कॉटन यार्न का हुआ. इसके अलावा निर्यात होने वाली खाद्य वस्तुओं में मछली एवं सी फूड, काली मिर्च, वनस्पति तेल, वसा आदि प्रमुख हैं. ग्रेनाइट ब्लॉक एवं अन्य बिल्डिंग स्टोन और रॉ कॉटन का भी निर्यात हुआ.
आयात किन वस्तुओं का
पिछले छह साल से भारत में चीन से आयात होने वाली प्रमुख वस्तुओं में ऑटोमेटिक डेटा प्रोसेसिंग मशीन एवं यूनिट, टेलीफोन इक्विपमेंट और वीडियो फोन, इलेक्ट्रॉनक सर्किट, ट्रांजिस्टर्स एवं सेमीकंडक्टर डिवाइस, एंटीबायोटिक्स, उर्वरक, साउंड रिकॉर्डिंग , डिवाइस और टीवी कैमरा, ऑटो कम्पोनेंट एवं एसेसरीज और प्रोजेक्ट गुड्स शामिल हैं.
कभी कॉपर कैथोड का भारत शुद्ध रूप से चीन को निर्यातक हुआ करता था, लेकिन अब यह इसका आयातक हो चुका है. इसी तरह पिछले कुछ वर्षो में कॉटन मुख्य व्यापारिक स्थिति और कॉटन यार्न के निर्यात में भी गिरावट आई है. इसी तरह भारत बड़े पैमाने पर दवाओं के लिए जरूरी कच्चे माल बल्क ड्रग और एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट (API) का आयात भी चीन से करता है. भारत की एपीआई जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा चीन से आता है. यहां तक की पैरासीटामाल जैसी दवा का एपीआई भी चीन से आता है.
भारत अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर चीन से तैयार उत्पादों का आयात करता है. उदाहरण के लिए भारत में जब टेलीकॉम क्रांति हुई तो इसके लिए जरूरी टेलीकॉम इक्विपमेंट और मोबाइल फोन बड़े पैमाने पर चीन से आयात किए गए.
इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर बाजार में चीन हावी है और भारतीय उद्योग अभी शैशव अवस्था में ही है. हालांकि भारत सरकार के प्रोत्साहन से अब देश में ही मोबाइल फोन के उत्पादन को बढ़ावा मिला है, इस वजह से मोबाइल आयात बिल में कमी आई है. भारत वैसे तो चीन को मुख्यत: कच्चा माल आपूर्ति करता है, लेकिन हाल के दिनों में कैंसर ड्रग, ऑटो कंपोनेंट और प्रोसेस्ड फूड का निर्यात बढ़ा है.
कई तरह की चिंताएं
चीन से व्यापारिक असंतुलन का एक बड़ा नुकसान यह है कि भारत को बड़े पैमाने पर अपने विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा चीन को सौंपना पड़ रहा है. इसके अलावा चीन भारत से सस्ता कच्चा माल खरीदता है और उनसे तैयार उत्पाद महंगे सामान को भारत में निर्यात करता है. इससे वहां के कारोबारी अच्छी कमाई करते हैं और साथ में वहां के नौजवानों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिलता है.
कोरोना संकट और भारत-चीन तनाव के बीच भी द्विपक्षीय व्यापार बढ़ने की सबसे बड़ी वजह यह है कि भारत को बड़े पैमाने पर चीन से चिकित्सा से जुड़े सामान का आयात करना पड़ा है. इस साल जनवरी से जून के दौरान भारत ने चीन से 26,000 वेंटिलेटर्स एवं ऑक्सीजन जनरेटर्स, 15,000 से ज्यादा मॉनिटर और 3,800 टन से ज्यादा दवाएं और चिकित्सा के अन्य सामान मंगाए.
कोरोना संकट के बीच जब चीन से एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट (API) के आयात पर रोक लग गई तो भारतीय दवा उत्पादकों के हाथ-पांव फूल गए. भारतीय दवा उत्पादकों की एपीआई जरूरत का करीब 80 फीसदी हिस्सा चीन से आयात किया जाता है. यहां तक पैरासीटामॉल जैसी सामान्य और जरूरी दवा का एपीआई भी चीन से आता है. सोचिए कहीं यदि चीनी उत्पादकों ने तनाव के माहौल आदि के बीच 2-3 महीने के लिए भी एपीआई आयात रोक दिया तो भारत की क्या हालत होगी?
तो एक बड़ा खतरा यह भी है कि कभी सीमा पर तनाव के बीच चीन व्यापार को भी एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है. वैसे तो चीन को भी भारत जैसे बड़े बाजार की सख्त जरूरत है, लेकिन जरूरी सामान के आयात को रोककर वह कुछ समय के लिए मुश्किल तो खड़ी ही कर सकता है. भारत के लिए इस तरह से व्यापार में किसी एक देश पर ज्यादा निर्भरता ठीक नहीं है.
लौह अयस्क के आयात पर भी चिंता
इस साल जनवरी से अप्रैल के दौरान चीन ने भारत के कुल आयरन ओर उत्पादन का 90 फीसदी हिस्सा आयात कर लिया. इसे लेकर घरेलू स्टील उत्पादकों ने चिंता भी जताई. उन्होंने लौह अयस्क के निर्यात मुख्य व्यापारिक स्थिति पर अंकुश लगाने की मांग की. चीन यहां का सस्ता लौह अयस्क उठा ले जा रहा है और उससे तैयार माल बनाकर दुनिया भर में बेच रहा है. इससे भारतीय मैन्युफैक्चरर्स के लिए मुश्किल होती है, क्योंंकि उन्हें वाजिब दाम पर लौह अयस्क नहीं मिल पाता.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि चीन और भारत के व्यापार में काफी असंतुलन है जिसे दूर करने की जरूरत है. ऐसा नहीं हुआ तो यह आगे चलकर भारत के लिए और नुकसानदेह साबित होगा. गौरतलब है कि व्यापार में चीन दुनिया में सबसे आगे है. अंकटाड की मुख्य व्यापारिक स्थिति एक रिपोर्ट के अनुसार कुल वैश्विक व्यापार में चीन का हिस्सा साल 2020 में सबसे ज्यादा 14.7 फीसदी था. इसके बाद अमेरिका का हिस्सा 8.1 फीसदी था.
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत जीडीपी के संदर्भ में विश्व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । यह अपने भौगोलिक आकार के संदर्भ में विश्व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधित मुद्दों के बावजूद विश्व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्त करने की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्मूलन और रोजगार उत्पन्न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।
इतिहास
ऐतिहासिक रूप से भारत एक बहुत विकसित आर्थिक व्यवस्था थी जिसके विश्व के अन्य भागों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध थे । औपनिवेशिक युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रिटिश भारत से सस्ती दरों पर कच्ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कहीं अधिक उच्चतर कीमत पर बेचा जाता था जिसके परिणामस्वरूप स्रोतों का द्धिमार्गी ह्रास होता था । इस अवधि के दौरान विश्व की आय में भारत का हिस्सा 1700 ए डी के 22.3 प्रतिशत से गिरकर 1952 में 3.8 प्रतिशत रह गया । 1947 में भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अर्थव्यवस्था की पुननिर्माण प्रक्रिया प्रारंभ हुई । इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित की गयी ।
1991 में भारत सरकार ने महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्तुत किए जो इस दृष्टि से वृहद प्रयास थे जिनमें विदेश व्यापार उदारीकरण, वित्तीय उदारीकरण, कर सुधार और विदेशी निवेश के प्रति आग्रह शामिल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत आगे निकल आई है । सकल स्वदेशी उत्पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रतिशत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रतिशत के रूप में बढ़ गयी ।
कृषि
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जो न केवल इसलिए कि इससे देश की अधिकांश जनसंख्या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्कि इसलिए भी भारत की आधी से भी अधिक आबादी प्रत्यक्ष रूप से जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है ।
विभिन्न नीतिगत उपायों के द्वारा कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हुई, जिसके फलस्वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्त हुई । कृषि में वृद्धि ने अन्य क्षेत्रों में भी अधिकतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में और अधिकांश जनसंख्या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मिलियन टन का एक रिकार्ड खाद्य उत्पादन हुआ, जिसमें सर्वकालीन उच्चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्पादन हुआ । कृषि क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रतिशत प्रदान करता है ।
उद्योग
औद्योगिक क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है जोकि मुख्य व्यापारिक स्थिति विभिन्न सामाजिक, आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है जैसे कि ऋण के बोझ को कम करना, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्मनिर्भर वितरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परिदृय को वैविध्यपूर्ण और आधुनिक बनाना, क्षेत्रीय विकास का संर्वद्धन, गरीबी उन्मूलन, लोगों के जीवन स्तर को उठाना आदि हैं ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार देश में औद्योगिकीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्टि से विभिन्न नीतिगत उपाय करती रही है । इस दिशा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगिक नीति संकल्प की उदघोषणा करना है जो 1948 में पारित हुआ और उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारित हुआ । 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रतिबंधों को हटाना, पहले सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए आरक्षित, निजी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनिश्चित मुद्रा विनिमय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / जावक हेतु आदि के द्वारा महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन लाए । इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्यधिक अपेक्षित तीव्रता प्रदान की ।
आज औद्योगिक क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रतिशत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रतिशत अंशदान करता है ।
सेवाऍं
आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि आधरित अर्थव्यवस्था से ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तन को देख रहा है । आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रतिशत ( 1991-92 के 44 प्रतिशत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक तिहाई है और भारत के कुल निर्यातों का एक तिहाई है
भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्लेखनीय वैश्विक ब्रांड पहचान प्राप्त की है जिसके लिए निम्नतर लागत, कुशल, शिक्षित और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्ति के एक बड़े पुल की उपलब्धता को श्रेय दिया जाना चाहिए । अन्य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्यवसाय प्रोसिस आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परिवहन, कई व्यावसायिक सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधित सेवाऍं और वित्तीय सेवाऍं शामिल हैं।
बाहय क्षेत्र
1991 से पहले भारत सरकार ने विदेश व्यापार और विदेशी निवेशों पर प्रतिबंधों के माध्यम से वैश्विक प्रतियोगिता से अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति अपनाई थी ।
उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परिवर्तित हो गया । विदेश व्यापार उदार और टैरिफ एतर बनाया गया । विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सहित विदेशी संस्थागत निवेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लिए जा रहे हैं । वित्तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्य अन्य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्तियों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।
आज भारत में 20 बिलियन अमरीकी डालर (2010 - 11) का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हो रहा है । देश की विदेशी मुद्रा आरक्षित (फारेक्स) 28 अक्टूबर, 2011 को 320 बिलियन अ.डालर है । ( 31.5.1991 के 1.2 बिलियन अ.डालर की तुलना में )
भारत माल के सर्वोच्च 20 निर्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्च 10 सेवा निर्यातकों में से एक है ।