सबसे अच्छी विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है

रिजर्व बैंक ने किया है मुद्रा का बेहतर प्रबंधन
भारत जैसे बड़े और उभरते बाजार वाले देश के लिए मुद्रा प्रबंधन एक पेचीदा काम है क्योंकि यहां चालू खाते का घाटा (सीएडी) निरंतर बना रहता है। चूंकि भारत शेष विश्व से बड़े पैमाने पर पूंजी जुटाता है इसलिए वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों में अचानक बदलाव काफी अस्थिरता पैदा करने वाला हो सकता है। ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लिए सतर्क रहना जरूरी है।
मुद्रा प्रबंधन की जटिलता का आकलन बीते वर्ष की घटनाओं से किया जा सकता है। गत वर्ष जब विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डॉलर का स्तर पार कर गया तो कुछ लोगों को यह अत्यधिक लग रहा था। ऐसे विचार सामने आए कि कैसे आरबीआई अपना प्रतिफल बढ़ा सकता है। नवंबर 2021 में इस स्तंभ में कुछ विचारों की व्यवहार्यता पर चर्चा की गई और यह दलील सबसे अच्छी विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है दी गई कि उच्च विदेशी मुद्रा भंडार से मौजूदा वैश्विक आर्थिक माहौल में जो सबसे मूल्यवान चीज हासिल की जा सकती है वह है वित्तीय स्थिरता। भारत की बाहरी स्थिति की प्रकृति को देखते हुए चीजें काफी तेजी से बदल सकती हैं। बीते महीनों में हम ऐसा होते हुए देख चुके हैं। खासतौर पर यूक्रेन युद्ध के बाद काफी बदलाव आया है। कई देशों में जहां मुद्रास्फीति संबंधी दबाव बढ़ रहा था वहीं जिंस की ऊंची कीमतों ने बड़े केंद्रीय बैंकों, खासकर फेडरल रिजर्व को तत्काल कदम उठाने पर विवश किया। इसके चलते इस सप्ताह नीतिगत दरों में 75 आधार अंकों का इजाफा हो गया। ये घटनाक्रम भारत को अलग तरह से प्रभावित करते हैं। सबसे पहले, ऊंची जिंस कीमतों के कारण व्यापार घाटा बढ़ रहा है। अनुमान है कि चालू वर्ष में चालू खाता घाटा जीडीपी के तीन प्रतिशत से अधिक रहेगा। दूसरा, वित्तीय हालात के तंग होने तथा वैश्विक बाजारों में जोखिम में बचाव के कारण पूंजी बाहर जा रही है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस वर्ष के आरंभ से अब तक 30 अरब डॉलर मूल्य की परिसंपत्तियों की बिक्री की। आयातकों और एफपीआई दोनों में डॉलर की मांग काफी ऊंची है और यह रुपये के मूल्य को प्रभावित कर रही है। इस वर्ष अब तक रुपया डॉलर के मुकाबले सात फीसदी गिर चुका है। यदि रिजर्व बैंक ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो रुपया और तेजी से गिरता। जनवरी 2022 से अब तक हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 60 अरब डॉलर तक घटा है। हालांकि इसके लिए कुछ हद तक पुनर्मूल्यांकन भी उत्तरदायी हो सकता है।
साफ कहा जाए तो आरबीआई ने महामारी के बाद से मुद्रा के प्रबंधन के क्षेत्र में काफी अच्छा काम किया है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने भारी प्रोत्साहन राशि डाली जिससे पूंजी की आवक बढ़ी। आरबीआई ने समय पर हस्तक्षेप किया और 2020-21 में 100 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा जुटाई। यदि आरबीआई ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो रुपये का अधिमूल्यन होता जिससे देश की बाह्य प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती और मुद्रा में और अधिक अस्थिरता आती।
रुपया तथा यूरो एवं येन जैसी अन्य मुद्राओं के दबाव में होने की एक वजह डॉलर का मजबूत होना भी है। 2022 में डॉलर सूचकांक 11 फीसदी बढ़ा है। पूंजी का अमेरिका जाना जारी रहेगा क्योंकि मौद्रिक नीति में अंतर है। इस बात की संभावना बहुत कम है कि यूरोपीय केंद्रीय बैंक या बैंक ऑफ जापान फेड की नीतिगत प्रतिक्रिया की बराबरी कर पाएंगे। दरों में अंतर बढ़ने से निवेशकों को फंड को अमेरिका स्थानांतरित करने का प्रोत्साहन मिलेगा। इससे यूरो और येन तथा अन्य मुद्राओं पर भी दबाव बढ़ेगा। इस परिदृश्य में एक सीमा के परे रुपये का बचाव करना नुकसानदेह भी साबित हो सकता है।
रुपये के बचाव की एक वजह आयातित मुद्रास्फीति को थामना हो सकता है। इस रणनीति की कीमत के रूप में वैश्विक जिंस कीमतें कुछ समय तक तेज बनी रहेंगी। इसकी एक अन्य वजह यह हो सकती है कि कंपनियों के पास बाहरी कर्ज के जोखिम का बचाव उपलब्ध न हो। ऐसी कंपनियों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए कि वे बचाव सुनिश्चित करें और लागत वहन करने के लिए शेष तंत्र पर निर्भर न रहें। इसके अलावा गिरती हुई मुद्रा अक्सर राजनीतिक लिहाज से भी अच्छी नहीं साबित होती। लेकिन आरबीआई के लिए यह चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। बल्कि उसे यह स्पष्ट करने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए कि रुपये का अवमूल्यन एवं समायोजन किस प्रकार भारत के हित में है। यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि चीन के विनिर्माण और निर्यात पावरहाउस में तब्दील होने की एक वजह उसकी मुद्रा का अवमूल्यित होना भी बताया जाता है। जरूरी नहीं कि भारत भी यही करे लेकिन उसे ऐसी स्थिति में भी नहीं होना चाहिए कि वह अपनी मुद्रा के बचाव के लिए ऋण लेना पड़े।
आरबीआई ने हाल ही में घोषणा की है कि वह विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने के उपाय कर रहा है। इस क्रम में बैंकों को अनिवासी भारतीयों से जमा जुटाने की शर्तें शिथिल की गईं। इतना ही नहीं डेट बाजार में एफपीआई को और लचीलापन प्रदान करने के अलावा घरेलू कंपनियों को विदेशों से उदार शर्त पर ऋण जुटाने की अनुमति दी गई। हो सकता है कि इन उपायों से आवक तत्काल न बढ़े लेकिन कुल मिलाकर इससे यही संकेत निकलता है कि भारत ऋण लेना चाहता है। भले ही ऐसा अल्पावधि में किया जाए। इसका लक्ष्य राजस्व और मुद्रा को मजबूत बनाना है।
वर्ष 2021-22 में भारत का बाहरी कर्ज 47 अरब डॉलर बढ़कर 620.7 अरब डॉलर हो गया। अल्पावधि के ऋण की परिपक्वता यानी एक वर्ष के ऋण के लिए यह 20 फीसदी थी। वहीं दीर्घावधि की ऋण परिपक्वता की बात करें तो इस वित्त वर्ष के अंत तक इसका आंकड़ा 40 फीसदी का स्तर पार कर सकता है। यानी 260 अरब डॉलर का ऋण हमें मार्च 2023 के पहले चुकाना होगा। इसका बड़ा हिस्सा आगे बढ़ाया जा सकता है लेकिन इससे अनिश्चितता तो आ ही सकती है। भारत का बाहरी ऋण और जीडीपी का अनुपात बहुत अधिक नहीं है लेकिन इससे जोखिम बढ़ सकता है। ऐसे में जब वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में स्थिरता आ आ जाए तो बेहतर होगा कि सरकार और केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा की आवक की समीक्षा करें। उदाहरण के लिए गैर सरकारी विदेशी ऋण 500 अरब डॉलर तक पहुंच रहा है। कंपनियों द्वारा ब्याज दर के चक्कर में अधिक विदेशी ऋण लेने से जोखिम उत्पन्न हो सकता है। इसका असर अन्य कारोबारी क्षेत्रों पर भी पड़ता है क्योंकि इससे मुद्रा अधिमूल्यित होती है।
बाजार में हल्के तेलों की आपूर्ति कम होने से तेल-तिलहन कीमतों में सुधार
नयी दिल्ली, 12 नवंबर (भाषा) जाड़े की मांग आने और आपूर्ति घटने से दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शनिवार को सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल तिलहन, बिनौला, कच्चे पामतेल (सीपीओ) और पामोलीन कीमतों में तेजी आई। निर्यात मांग होने से तिल तेल के भाव भी सुधार के साथ बंद हुए।
कारोबारी सूत्रों ने कहा कि विदेशों से आयात मांग होने की वजह से तिल तेल के भाव में पर्याप्त सुधार आया। किसानों ने पिछले साल अगस्त में सोयाबीन लगभग 10,000 रुपये क्विंटल के भाव पर बेचा था जो इस बार 5,500-5,600 रुपये क्विंटल के भाव पर बिक रहा है। हालांकि यह कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक ही है पर पिछले साल के भाव के मुकाबले कम है। इस बार किसानों ने बीज भी महंगा खरीदा था। जिसकी वजह से किसान कम भाव में बिकवाली करने से बच रहे हैं। इस वजह से सरसों, मूंगफली और सबसे अच्छी विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है सोयाबीन तेल तिलहन कीमतों में सुधार आया। सोयाबीन तेल संयंत्र वालों की पाईपलाइन खाली होने से भी सोयाबीन तेल तिलहन कीमतों में सुधार है।
सूत्रों ने कहा कि खाद्यतेल मामलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए सरकार को जोरदार प्रयास करने होंगे और इसके लिए सबसे अहम है कि खाद्यतेलों का वायदा कारोबार न खोला जाए। इससे केवल सट्टेबाजी को बल मिलता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2022 के अप्रैल-मई महीने में जब आयातित तेलों की भारी कमी हुई थी तो देशी तेल-तिलहनों की मदद से इस कमी को पूरा करने में सफलता मिली थी और उस वक्त खाद्य तेलों का वायदा कारोबार भी बंद था। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भी देश में तेल तिलहन उत्पादन बढाने और सबसे अच्छी विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है एक समय आत्मनिर्भरता हासिल कर लेना बहुत जरूरी है। विदेशी बाजारों की गिरावट और तेजी से घरेलू तेल उद्योग, किसान और उपभोक्ता परेशान हैं।
सूत्रों ने कहा कि वर्ष 1991-92 में खाद्यतेलों का वायदा कारोबार नहीं होने पर भी खाद्यतेल मामले में देश लगभग आत्मनिर्भर था। इसके साथ ही तिलहनों के डी-आयल्ड केक (डीओसी) और तिलहन का निर्यात करके देश पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा भी कमाता था। लेकिन आज देश की खाद्यतेल मामले में विदेशों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है और भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा खर्च भी करना पड़ रहा है।
सूत्रों ने कहा कि तेल तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने से विदेशों पर हमारी निर्भरता घटेगी, देश के तेल प्रसंस्करण मिलों को फायदा होगा, लोगों को रोजगार मिलेंगे, सबसे बड़ी बात कि देश के बहुमूल्य विदेशीमुद्रा की भारी मात्रा में बचत होगी।
शनिवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन - 7,475-7,525 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली - 6,810-6,870 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,620 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली रिफाइंड तेल 2,520-2,780 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 15,400 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 2,340-2,470 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 2,410-2,525 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी - सबसे अच्छी विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 15,100 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 14,800 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 13,550 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 9,200 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 13,400 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,800 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 9,800 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना - 5,800-5,900 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज 5,610-5,660 रुपये प्रति क्विंटल।
मक्का खल (सरिस्का) 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।
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चलती औसत ट्रेडिंग रणनीति - Olymp trade
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कई व्यापारी एक प्रभावी और सरल रणनीति की खोज कर रहे हैं जो उन्हें लाभदायक ट्रेडों को बनाने में मदद करेगी। शुरुआती लोगों के लिए, बाजार पर उनके द्वारा किए जाने वाले सभी कार्यों को समझना भी बहुत महत्वपूर्ण है।
हम आपको प्रस्तुत करना चाहते हैं चलायमान औसत ट्रेडिंग रणनीति। यह विधि आपको मूल्य चार्ट का विश्लेषण करने और सही व्यापार निर्णय लेने में मदद करेगी।
यह रणनीति दो लाइनों पर आधारित है, जिन्हें "मूविंग एवेर्स" कहा जाता है। वे यादृच्छिक उतार-चढ़ाव के बिना मूल्य के आंदोलन को दिखाते हैं। ये लाइनें आपको मूल्य आंदोलन की दिशा दिखाएंगी ताकि आप प्रवृत्ति को स्पष्ट रूप से देख सकें और इसका लाभ कमा सकें।
तो, दो लाइनों का उपयोग क्यों करें? विचार तब तक इंतजार करना है जब तक उनमें से एक दूसरे को पार नहीं कर जाता। तब आपको एक द्विआधारी विकल्प खरीदने या बेचने के लिए एक स्पष्ट संकेत मिलेगा।
संकेतक सेट करना
इस रणनीति का उपयोग शुरू करने के लिए आपको तकनीकी विश्लेषण के साथ एक खिड़की की आवश्यकता होगी। आप आसानी से OLYMPTRADE प्लेटफॉर्म पर एक पा सकते हैं।
उस वित्तीय साधन का चार्ट खोलें जिसे आप व्यापार करने जा रहे हैं। हम आपको EUR / USD, EUR / JPY, GBP / USD या सोना चुनने की सलाह देते हैं। व्यापार के लिए सबसे अच्छा समय यूरोपीय सत्र (09: 00 से 12: 00 मास्को के समय तक) या अमेरिकी सत्र (15: 00 से 19: 00) तक होगा। जब बाजार सक्रिय नहीं होता है, तो इस रणनीति का उपयोग न करना बेहतर होता है (आमतौर पर 20: 00 से 08: 00 द्वारा मास्को समय)।
इसलिए, 1 मिनट की समयावधि के साथ चार्ट खोलें।
उपलब्ध संकेतकों की सूची से मूविंग औसत। इस लाइन के लिए निम्नलिखित सेटिंग्स का उपयोग करें (हम इस लाइन को "धीमा" कहेंगे):
रंग नीला चार्ट पर एक और चलती औसत जोड़ें। इस बार निम्नलिखित सेटिंग्स का उपयोग करें:
हरा रंग करें
संकेत प्राप्त करना
अब हम ट्रेडिंग शुरू करने के लिए तैयार हैं! जैसा कि हम याद करते हैं, नीली रेखा धीमी है और हरी रेखा तेज है। एक बार जब ये लाइनें एक-दूसरे को पार कर जाती हैं, तो आपको पता चल जाएगा कि द्विआधारी विकल्प को ऊपर या नीचे खोलने का समय है। 5- मिनट समय सीमा का उपयोग करें। यह सबसे इष्टतम समय है जो आपको बहुत जोखिम के सबसे अच्छी विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है बिना उत्पन्न होने वाली प्रवृत्ति से लाभ कमाने में मदद करेगा।
ट्रेडिंग "डाउन"
आपको "डाउन" का व्यापार करना चाहिए जब क्विक मूविंग एवरेज लाइन (ग्रीन वन) TOP से BOTTOM तक धीमी मूविंग एवरेज लाइन (ब्लू वन) को पार करती है।
महंगा व्यापार करना"
आपको "अप" का व्यापार करना चाहिए जब क्विक मूविंग एवरेज लाइन (हरी वाली) BOTTOM से TOP पर धीमी मूविंग एवरेज लाइन (ब्लू वन) को पार करती है।
जैसा कि आप हमारे उदाहरण से देख सकते हैं, चार्ट लगातार लाभदायक ट्रेडों को खोलने के लिए संकेत बनाता है। ध्यान दें कि आपको तब तक व्यापार शुरू नहीं करना चाहिए जब तक कि लाइनों में से एक ने दूसरे को पार नहीं किया हो। चार्ट का उपयोग करने और व्यापार के अच्छे अवसरों को नोटिस करने का तरीका सीखने से पहले यह लंबे समय तक नहीं होगा।
अस्वीकरण : वायदा, स्टॉक और विकल्प ट्रेडिंग में नुकसान का पर्याप्त जोखिम शामिल है और हर निवेशक के लिए उपयुक्त नहीं है। वायदा, स्टॉक और विकल्पों के मूल्यांकन में उतार-चढ़ाव हो सकता है, और परिणामस्वरूप, ग्राहक अपने मूल निवेश से अधिक खो सकते हैं। मौसमी और भू-राजनीतिक घटनाओं का प्रभाव पहले से ही बाजार की कीमतों में निहित है। वायदा कारोबार के अत्यधिक लाभकारी प्रकृति का मतलब है कि छोटे बाजार के आंदोलनों का आपके ट्रेडिंग खाते पर बहुत प्रभाव पड़ेगा और यह आपके खिलाफ काम कर सकता है, जिससे बड़े नुकसान हो सकते हैं या आपके लिए काम कर सकते हैं, जिससे बड़े लाभ हो सकते हैं।
यदि बाजार आपके खिलाफ चलता है, तो आप अपने खाते में जमा की गई राशि से अधिक हानि कर सकते हैं। आप उन सभी जोखिमों और वित्तीय संसाधनों के लिए जिम्मेदार हैं जिनका आप उपयोग करते हैं और चुने हुए ट्रेडिंग सिस्टम के लिए। आपको तब तक ट्रेडिंग में संलग्न नहीं होना चाहिए जब तक कि आप लेन-देन की प्रकृति को पूरी तरह से नहीं समझते हैं और आप नुकसान के संपर्क में हैं। यदि आप इन जोखिमों को पूरी तरह से नहीं समझते हैं, तो आपको अपने वित्तीय सलाहकार से स्वतंत्र सलाह लेनी चाहिए।