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डेरिवेटिव और डेरिवेटिव बाजार का परिचय

डेरिवेटिव और डेरिवेटिव बाजार का परिचय
Important Points

शेयर मार्केट क्या है और कैसे काम करता हैं | Share Market In Hindi

Share Market In Hindi: शेयर बाजार एक ऐसा मंच है जहां निवेशक शेयर, बांड और डेरिवेटिव जैसे वित्तीय साधनों में व्यापार करने के लिए आते हैं। स्टॉक एक्सचेंज इस लेनदेन के एक सूत्रधार के रूप में काम करता है और शेयरों की खरीद और बिक्री को सक्षम बनाता है।

भारतीय शेयर बाजार का परिचय (Introduction to the Indian Stock Market)

Table of Contents

शेयर बाजार निवेश का सबसे बड़ा जरिया है। भारत में मुख्य रूप से दो स्टॉक एक्सचेंज हैं, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई)। कंपनियां पहली बार अपने शेयरों को आईपीओ के जरिए स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करती हैं। निवेशक इन शेयरों में द्वितीयक बाजार के माध्यम से व्यापार कर सकते हैं।

भारत में दो स्टॉक एक्सचेंजों में कुछ अवसरों पर INR 6,00,000 करोड़ के शेयरों का कारोबार हुआ है। भारत में शुरुआती लोग अक्सर शेयर बाजार में जुए में निवेश करने पर विचार करते हैं, लेकिन शेयर बाजार की एक बुनियादी समझ उस धारणा को बदल सकती है।

भारतीय शेयर बाजारों का विनियमन (Regulation of the Indian Stock Markets)

भारत में शेयर बाजारों का विनियमन और पर्यवेक्षण भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के पास है। सेबी का गठन 1992 के सेबी अधिनियम के तहत एक स्वतंत्र पहचान के रूप में किया गया था और स्टॉक एक्सचेंजों का निरीक्षण करने की शक्ति रखता है। निरीक्षण प्रशासनिक नियंत्रण के पहलुओं के साथ बाजार के संचालन और संगठनात्मक संरचना की समीक्षा करते हैं। सेबी की मुख्य भूमिका में शामिल हैं:

  • निवेशकों के विकास के लिए एक निष्पक्ष और न्यायसंगत बाजार सुनिश्चित करना
  • एक्सचेंज संगठन का अनुपालन, सिस्टम सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट्स (विनियमन) अधिनियम (एससी (आर) अधिनियम), 1956 के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार इसका अभ्यास करता है।
  • सेबी द्वारा जारी दिशा-निर्देशों और निर्देशों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करें
  • जाँच करें कि क्या एक्सचेंज ने सभी शर्तों का अनुपालन किया है और एससी (आर) अधिनियम 1956 की धारा 4 के तहत, यदि आवश्यक हो तो अनुदान का नवीनीकरण किया है।

शेयर बाजार के प्रकार (Share Market In Hindi)

शेयर बाजार दो प्रकार के होते हैं, प्राथमिक और द्वितीयक बाजार।

प्राथमिक शेयर बाजार (Primary Share Market)

यह प्राथमिक बाजार में है कि कंपनियां अपने शेयर जारी करने और धन जुटाने के लिए खुद को पंजीकृत करती हैं। इस प्रक्रिया को स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टिंग के रूप में भी जाना जाता है। प्राथमिक बाजार में प्रवेश करने का उद्देश्य धन जुटाना है डेरिवेटिव और डेरिवेटिव बाजार का परिचय और यदि कंपनी पहली बार अपने शेयर बेच रही है तो इसे प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) कहा जाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, कंपनी एक सार्वजनिक इकाई बन जाती है।

द्वितीयक बाजार (Secondary Market)

प्राथमिक बाजार में नई प्रतिभूतियों के बेचे जाने के बाद कंपनी के शेयरों का द्वितीयक बाजार में कारोबार होता है। इस तरह निवेशक अपने शेयर बेचकर बाहर निकल सकते हैं। द्वितीयक बाजार में होने वाले ये लेन-देन व्यापार कहलाते हैं। इसमें निवेशकों की एक-दूसरे से खरीदारी करने और सहमत मूल्य पर आपस में बेचने की गतिविधि शामिल है। एक दलाल एक मध्यस्थ है जो इन लेनदेन की सुविधा प्रदान करता है।

शेयर बाजार कैसे काम करते हैं (How do the Share Markets work)

स्टॉक एक्सचेंज प्लेटफॉर्म को समझना (Understanding the Stock Exchange Platform)

स्टॉक एक्सचेंज वास्तव में एक ऐसा मंच है जो स्टॉक और डेरिवेटिव जैसे वित्तीय साधनों का व्यापार करता है। इस प्लेटफॉर्म पर गतिविधियों को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा नियंत्रित किया जाता है। ट्रेड करने के लिए प्रतिभागियों को सेबी और स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकरण कराना होता है। व्यापारिक गतिविधियों में दलाली, कंपनियों द्वारा शेयर जारी करना आदि शामिल हैं।

सेकेंडरी मार्केट में कंपनी की लिस्टिंग (Listing of the Company in the Secondary Market)

किसी कंपनी के शेयर पहली बार प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश या आईपीओ के माध्यम से द्वितीयक बाजार में सूचीबद्ध होते हैं। शेयरों का आवंटन लिस्टिंग से पहले होता है और शेयरों के लिए बोली लगाने वाले निवेशकों को निवेशकों की संख्या के आधार पर अपना हिस्सा मिलता है।

द्वितीयक बाजार में व्यापार (Trading in the Secondary Market)

एक बार कंपनी सूचीबद्ध हो जाने के बाद, निवेशकों द्वारा द्वितीयक बाजार में शेयरों का कारोबार किया जा सकता है। यह खरीदारों और विक्रेताओं के लिए लेन-देन करने और मुनाफा कमाने या कुछ मामलों में नुकसान का बाजार है।

स्टॉक ब्रोकर्स (Stock Brokers)

हजारों की संख्या में निवेशकों की संख्या के कारण, उन्हें एक स्थान पर इकट्ठा करना मुश्किल है। इसलिए, व्यापार करने के लिए, स्टॉक ब्रोकर और ब्रोकरेज फर्म तस्वीर में आते हैं।

ये ऐसी संस्थाएं हैं जो स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत हैं और निवेशकों और एक्सचेंज के बीच मध्यस्थ के रूप में काम करती हैं। जब आप किसी शेयर को किसी निश्चित दर पर खरीदने का ऑर्डर देते हैं, तो ब्रोकर इसे एक्सचेंज में प्रोसेस करता है जहां कई पार्टियां शामिल होती हैं।

आपके आदेश का पारित होना (Passing of your order)

आपका खरीद ऑर्डर ब्रोकर द्वारा एक्सचेंज को पास कर दिया जाता है, जहां उसका मिलान उसी के लिए बेचने के ऑर्डर के लिए किया जाता है। विनिमय तब होता है जब विक्रेता और खरीदार एक कीमत पर सहमत होते हैं और इसे अंतिम रूप देते हैं; फिर आदेश की पुष्टि की जाती है।

समझौता (Settlement)

एक बार जब आप किसी कीमत को अंतिम रूप दे देते हैं, तो एक्सचेंज यह सुनिश्चित करने के लिए विवरण की पुष्टि करता है कि लेनदेन में कोई चूक नहीं है। एक्सचेंज तब शेयरों के स्वामित्व के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है जिसे निपटान के रूप में जाना जाता है। ऐसा होने पर आपको एक संदेश प्राप्त होता है। इस संदेश के संचार में ब्रोकरेज ऑर्डर विभाग, एक्सचेंज फ्लोर ट्रेडर्स आदि जैसे कई पक्ष शामिल होते हैं।

शुरू कैसे करें!

पूरे पहले मॉड्यूल में आपको स्टॉक मार्केट या शेयर बाज़ार से परिचित करवा दिया गया है। हमारी कोशिश रही है कि वो सारे विषय आप समझ जाएं जिनको जानना आपके लिए, एक निवेशक के तौर पर ज़रूरी है, खासकर तब जब आप बाज़ार के लिए एकदम नए हैं। अब भी अगर आपके दिमाग में सवाल बचे हैं, तो अच्छी बात है, क्योंकि आगे आने वाले मॉड्यूल में हम उनके जवाब देंगे।

यहाँ हम ये बताना भी ज़रूरी समझते हैं कि हमने इतने मॉड्यूल क्यों बनाए हैं, और वो आपस में कैसे जुड़े हुए हैं। एक बार फिर से नज़र डाल लीजिए कि कौन से मॉड्यूल हमने बनाएं हैं।

  1. स्टॉक मार्केट का परिचय
  2. टेक्निकल एनालिसिस
  3. फंडामेंटल एनालिसिस
  4. फ्यूचर ट्रेडिंग
  5. ऑप्शन थ्योरी
  6. ऑप्शन स्ट्रैटेजीज
  7. क्वांटिटेटिव कॉन्सेप्ट्स
  8. कमोडिटी बाज़ार
  9. रिस्क मैनेजमेंट और ट्रेडिंग फिलॉसफी
  10. ट्रेडिंग स्ट्रैटेजीज और सिस्टम्स
  11. फाइनेंशियल मॉडलिंग फॉर इंवेस्टमेंट प्रैक्टिस

13.1 इतने सारे मॉड्यूल – आपस में कैसे जुड़े हैं?

जेरोधा- वारिसटी (Zerodha- Varsity) में हमारी कोशिश है कि बाज़ार से जुड़े अच्छे शैक्षिक विषयों को आपतक पहुंचा सके। इसमें शामिल विषय हैं फंडामेंटल एनालिसिस, टेक्निकल एनालिसिस, डेरिवेटिव्स, ट्रेडिंग स्ट्रैटेजीज, रिस्क मैनेजमेंट आदि। हर मुख्य विषय पर एक मॉड्यूल है। लेकिन अगर आप बाज़ार में नए हैं या कहें कि नए निवेशक हैं तो आपको ये लग सकता है कि ये सारे विषय आपस में जुड़े हुए कैसे हैं?

इस सवाल के जवाब में आपसे एक सवाल करना ज़रूरी है। आपको क्या लगता है कि बाज़ार में सफल होने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज़ क्या है? बाज़ार में सफलता का मतलब है कि आप खूब सारे पैसे बनाएं और अगर आप पैसा नहीं बना रहे हैं, तो आप असफल हैं। तो मेरे सवाल के जवाब में, आपके दिमाग में बहुत सारी बातें आएंगी, जैसे- रिस्क मैनेजमेंट, अनुशासन, टाइमिंग (timing) यानी सही वक्त पर सही फैसला, बाज़ार से जुड़ी जानकारी इत्यादि।

इन चीजों के महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन ज्यादा ज़रूरी और प्राथमिक है एक दृष्टिकोण या नज़रिया (Point of view) बनाना ।

दृष्टिकोण या नज़रिया वो चीज है जो आपको बताती है कि बाज़ार किस दिशा में जाएगा। अगर आपको लगता है कि बाज़ार ऊपर जाएगा, तो आपका नज़रिया तेज़ी का है, और आप शेयर खरीदेंगे। इसी तरीके से अगर आपका नज़रिया मंदी का है, तो आप बाज़ार में शेयर बेचेंगे।

लेकिन ये नज़रिया आप कैसे बना सकते हैं? आप कैसे तय करेंगे कि बाज़ार ऊपर जाएगा कि नीचे?

नज़रिया या दृष्टिकोण बनाने के लिए एक सही कार्य प्रणाली से बाज़ार का परीक्षण (Analysis) करना होगा। कुछ तरीके हैं जिनका इस्तेमाल कर आप ये परीक्षण कर सकते हैं।

  1. फंडामेंटल एनालिसिस
  2. टेक्निकल एनालिसिस
  3. क्वांटिटेटिव एनालिसिस
  4. बाहर का नज़रिया (Outside views)

आपको समझाने के लिए हम एक उदाहरण देते हैं कि एक ट्रेडर के दिमाग में क्या चल रहा होता है, जब वो अपना नज़रिया बना रहा होता है।

फंडामेंटल एनालिसिस पर आधारित दृष्टिकोण – कंपनी के तिमाही नतीजे अच्छे दिख रहे हैं, कंपनी ने बिक्री में 25% और मुनाफे में 15% वृद्धि दिखाई है। कंपनी ने आगे का भविष्य यानी गाइडेंस (Guidance) भी अच्छा बताया है। तो ये सारे फंडामेंटल संकेत शेयर में तेज़ी दिखाते हैं और इसलिए ये शेयर खरीदने की श्रेणी में है।

टेक्निकल एनालिसिस पर आधारित दृष्टिकोण – MACD इंडिकेटर तेज़ी दिखा रहा है और ये बुलिश कैंडलस्टिक पैटर्न (Bullish Candlestick Pattern) के साथ है। इसको देखने पर शेयर छोटी अवधि के लिए (Short Term) तेज़ी में दिखता है और इसे खरीदा जा सकता है।

क्वांटिटेटिव एनालिसिस पर आधारित दृष्टिकोण – पिछले दिनों की तेज़ी के बाद शेयर के PE ने तीसरे स्टैंडर्ड डेविएशन ( 3 rd Standard Deviation) को छू लिया है। PE के तीसरे स्टैंडर्ड डेविएशन को तोड़ने की उम्मीद 1% ही है। इसलिए ये मानना बेहतर होगा कि शेयर की चाल बदल रही है और ये बेचे जाने के लिए तैयार है।

बाहर का नज़रिया (Outside views)- टेलिविजन पर आ रहे एनालिस्ट शेयर में खरीदारी की सलाह दे रहे हैं इसलिए शेयर खरीदा जा सकता है।

आपका नज़रिया आपकी अपनी एनालिसिस पर आधारित होना चाहिए ना कि किसी और के कहने से, क्योंकि बाद में आप किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते।

अपना नज़रिया बनाने के बाद आप आमतौर पर क्या करेंगे? क्या सीधे बाज़ार में जाएंगे और सौदे करने लगेंगे? वास्तव में बाज़ार की पेचीदगियां यहीं से शुरू होती हैं।

अगर आपका नज़रिया तेज़ी का है तो आप…

  1. स्पॉट मार्केट में शेयर खरीद सकते हैं।
  2. डेरिवेटिव बाज़ार में शेयर खरीद सकते हैं।
      1. डेरिवेटिव में आप शेयर का फ्यूचर खरीद सकते हैं।
      2. या आप ऑप्शन में सौदे कर सकते हैं।
        1. ऑप्शन में कॉल ऑप्शन (Call Option) भी है और पुट ऑप्शन (Put Option) भी है।
        2. आप कॉल और पुट ऑप्शन का एक मिश्रण ले कर सिंथेटिक बुलिश ट्रेड (Synthetic Bullish Trade) भी कर सकते हैं।

        तो अपना नज़रिया बनाने के बाद आप क्या करेंगे यह एक अलग ही खेल है। सही इंस्ट्रूमेंट को चुनना ही आपके नज़रिए को ट्रेडिंग में सफल या असफल बनाता है।

        उदाहरण के लिए, अगर मैं एक शेयर को लेकर एक साल के लिए तेज़ी में हूं तो मेरे लिए अच्छा ये होगा कि मैं उस शेयर को डिलीवरी ट्रेडिंग में लेकर रख लूं। लेकिन अगर मैं कम समय के लिए तेज़ी का नज़रिया रखता हूं, जैसे कि 1 हफ्ता, तो फ्यूचर का कोई इंस्ट्रूमेंट मेरे सौदे के लिए बेहतर होगा।

        अगर मैं तेज़ी में हूं लेकिन उस नज़रिए में कुछ शर्तें जुड़ी हुई हैं, जैसे- मुझे लगता है कि बाज़ार बजट भाषण के बाद उछलेगा, लेकिन मैं बहुत रिस्क या जोखिम लेने को तैयार नहीं हूं तो मेरे लिए ऑप्शन इंस्ट्रूमेंट बेहतर होंगे।

        तो कुल मिलाकर बाज़ार के हर खिलाड़ी को अपना नज़रिया बनाना चाहिए और उसके लिए सही ट्रेडिंग इंस्ट्रूमेंट चुनना चाहिए, तभी आप बाज़ार में सफल हो सकते हैं।

        उम्मीद है कि अब तक आपको समझ आ गया होगा कि अलग-अलग मॉड्यूल कैसे बाज़ार की एक पूरी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं।

        फ्लो चार्ट के शब्द

        • Fundamental Analysis – फंडामेंटल एनालिसिस
        • Technical Analysis – टेक्निकल एनालिसिस
        • Quantitative Analysis – क्वांटिटेटिव एनालिसिस
        • Outside view – बाहरी नज़रिया
        • Point of view- नज़रिया या दृष्टिकोण
        • Trading terminal – ट्रेडिंग टर्मिनल
        • Spot market transaction – स्पॉट मार्केट सौदे
        • Derivative market transaction – डेरिवेटिव्स मार्केट सौदे
        • Futures – फ्यूचर्स
        • Options – ऑप्शंस
        • Call डेरिवेटिव और डेरिवेटिव बाजार का परिचय option – कॉल ऑप्शन
        • Put option – पुट ऑप्शन
        • Over 400 strategies can be built using the combination of call and put options – इनसे मिलाकर करीब 400 तरीके की स्ट्रैटेजी या रणनीति बनाई जा सकती है।

        इसको ध्यान में रखते हुए जेरोधा वारसिटी (Zerodha Varsity) के अध्यायों को पढ़ेंगे तो आपको फायदा होगा।

        अगले 2 मॉड्यूल में टेक्निकल और फंडामेंटल एनालिसिस पर आधारित नज़रिया (PoV – Point of View) बनाना सीखेंगे।

        इन 2 मॉड्यूल के बाद जब आपको नज़रिया बनाना आ जाएगा तब आगे के मॉड्यूल में अलग अलग ट्रेडिंग इंस्ट्रूमेंट की जानकारी दी जाएगी, ताकि आप आपने नज़रिए पर आधारित इंस्ट्रूमेंट चुन सकें। साथ ही आगे बढ़ने पर सौदों को बेहतर बनाने के लिए सफल रिस्क मैनेजमेंट तकनीक बताएंगे।

        डेरिवेटिव क्या है?। डेरिवेटिव्स। Derivatives in Hindi

        हालांकि कुछ डेरिवेटिव्स के अलग से भी एक्सचेंज होते हैं। जैसे कि कमोडिटी डेरिवेटिव्स (Commodity derivatives) की ही बात करें तो इंडिया में इसके लिए अलग से भी एक्सचेंज है। ये क्या होता है इसे हम आगे समझेंगे।

        डेरिवेटिव्स पूंजी बाज़ार में सबसे तेजी से धन कमाने का एक बेहतरीन जरिया है। कम से कम पैसों में भी इस विधि से लाभ कमाया जा सकता है। पर बात वही है कि अगर प्रॉफ़िट ज्यादा है तो रिस्क भी बहुत ज्यादा है।

        कुछ लोग तो इस मार्केट में बहुत ज्यादा पैसा कमाने के मकसद से ही आते हैं वहीं कुछ लोग अपना रिस्क कम करने के लिए आते है। ये सब कैसे होता है सब हम आगे समझने वाले हैं।

        | डेरिवेटिव क्या है?

        प्रतिभूतियों (Securities) को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है – (1) इक्विटि प्रतिभूतियां (equity securities) (2) डेट प्रतिभूतियां (Debt securities) और (3) डेरिवेटिव प्रतिभूतियां (Derivatives securities)। नीचे दिये गए चार्ट में आप इसे देख सकते हैं।

        डेरिवेटिव क्या है

        कहने का अर्थ ये है कि डेरिवेटिव भी एक प्रतिभूति है जिसका कि एक मौद्रिक मूल्य होता है। लेकिन यहाँ याद रखने वाली बात है कि ये अपना मूल्य खुद से प्राप्त नहीं करता है बल्कि किसी और चीज़ से प्राप्त करता है।

        यानी कि कोई भी ऐसा उपकरण (Instrument) जिसकी अपनी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है बल्कि उसकी वैल्यू किसी और ही चीज़ से प्राप्त होती है। उसे डेरिवेटिव (Derivatives) कहा जाता है।

        दूसरे शब्दों में कहें तो, कोई भी ऐसा उपकरण जिसकी अपनी तो कोई वैल्यू न हो लेकिन उसकी वैल्यू किस और चीज़ पर निर्भर करता हो। जिस चीज़ पर उसकी वैल्यू निर्भर करता है उसे अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) कहा जाता है। इस सब डेरिवेटिव और डेरिवेटिव बाजार का परिचय का क्या मतलब है, आइये इसे एक उदाहरण से समझते हैं।

        | डेरिवेटिव क्या है; उदाहरण से समझिये

        मान लीजिये आप एक सरकारी ऑफिस का कई दिनों से चक्कर लगा रहे हैं और आपका काम नहीं हो रहा है। पर एक दिन आपको एक बड़े अधिकारी से बात होती है और वो आपको एक कागज पर कुछ लिख के और अपना साइन करके आपको देता है और कहता है कि आप इसे लेकर उस अमुक स्टाफ को दिखा दीजिये आपका काम हो जाएगा।

        आप उस कागज को को लेकर जाते हैं और आपका काम हो जाता है। तो आप खुद ही सोचिए कि क्या उस कागज की कोई कीमत थी। बिलकुल नहीं, उस कागज की अपने आप में कोई कीमत नहीं थी। उसकी कीमत उस साइन के कारण है जो उस सक्षम अधिकारी ने उस पर की है। यानी कि वो कागज अपनी कीमत कहीं और से प्राप्त कर रही है। यही तो डेरिवेटिव्स है।

        जहां से वो अपना वैल्यू प्राप्त कर रहा है यानी कि वो साइन, वो उस कागज का अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) है। क्योंकि अगर वो साइन नहीं होता तो कागज की कोई वैल्यू नहीं होती। ऐसे ही ढेरों उदाहरण आप अपने आस-पास से ले सकते हैं।

        जैसे कि बैंक नोट को ले लीजिये वो तो बस एक कागज का टुकरा भर है। लेकिन उसकी अपनी एक वैल्यू होती है क्योंकि आरबीआई उसे अप्रूव करती है। यानी कि एक बैंक नोट की वैल्यू आरबीआई से प्राप्त हो रही है इसीलिए आरबीआई उस नोट का Underlying Asset हुआ।

        ⚫ इसी तरह मान लीजिये पनीर है। उसकी अपनी कोई वैल्यू नहीं है। उसकी वैल्यू तो उस दूध पर निर्भर करती है जिससे वो बना है। दूध के दाम के अनुसार ही पनीर का दाम भी बदलेगा। यानी कि इस केस में दूध उस पनीर का Underlying Asset है।

        ⚫ इसी प्रकार अगर हम पेट्रोल को लें तो उसका अपने आप में कोई वैल्यू नहीं है उसकी वैल्यू क्रूड ऑइल पर निर्भर करता है। यानी कि वो अपनी कीमत क्रूड ऑइल से प्राप्त करता है इसीलिए पेट्रोल का Underlying Asset क्रूड ऑइल हो गया।

        ⚫ इसी प्रकार मान लीजिये रिलायंस का एक शेयर है तो उस शेयर की अपनी कोई वैल्यू नहीं है। उसकी वैल्यू तो कंपनी की नेट वर्थ (Net worth) तथा डिमांड और सप्लाइ से प्राप्त हो रहा है। इसीलिए शेयर का Underlying Asset वो कंपनी या मार्केट है।

        कोमोडिटी डेरिवेटिव्स – अगर किसी डेरिवेटिव्स का Underlying Asset कोई वस्तु हो जैसे कि गेहूं, चावल, आलू, कॉटन, गोल्ड, सिल्वर आदि तो हम इसे कोमोडिटी डेरिवेटिव्स (Commodity Derivatives) कहते हैं।

        फ़ाईनेंसियल डेरिवेटिव्स – इसी प्रकार अगर किसी डेरिवेटिव्स का Underlying Asset कोई उपकरण (Instrument) हो जैसे कि शेयर, इंडेक्स आदि तो हम उसे फ़ाईनेंसियल डेरिवेटिव्स (Financial derivatives) कहते हैं।

        ⚫ जब हम किसी कंपनी के स्टॉक या शेयर को खरीदते है या बेचते है तो उसे स्टॉक ट्रेडिंग या इन्वेस्टिंग कहते हैं। लेकिन अगर हम किसी कंपनी के स्टॉक को न खरीद या बेच करके उसके डेरिवेटिव्स की खरीद या बिक्री करते हैं तो उसे स्टॉक बेस्ड डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग (Stock Based Derivatives Trading) कहा जाता है। ये कैसे होता है इसे हम आगे समझेंगे।

        Q. जब हम शेयर में निवेश (Investment) कर सकते है और उससे भी पैसे कमा सकते हैं तो फिर डेरिवेटिव्स की क्या जरूरत है?

        बात दरअसल ये है कि शेयर लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होता है। लेकिन अगर आपको कम समय में ही बहुत ज्यादा पैसे छापने है तो डेरिवेटिव्स इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। बहुत ही कम समय में अधिक डेरिवेटिव और डेरिवेटिव बाजार का परिचय से अधिक पैसा इससे कमाया जा सकता है। ये सब कैसे होता है सब आगे समझने वाले हैं। आइए पहले डेरिवेटिव्स (Derivatives) के प्रकार की बात करते हैं।

        | डेरिवेटिव्स के प्रकार

        डेरिवेटिव्स (Derivatives) डेरिवेटिव और डेरिवेटिव बाजार का परिचय चार प्रकार के होते हैं –
        1. फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स (Forward Derivatives)
        2. फ्युचर डेरिवेटिव्स (Future Derivatives)
        3. ऑप्शन डेरिवेटिव्स (Option Derivatives)
        4. स्वैप डेरिवेटिव्स (Swap Derivatives)

        हम सभी को एक-एक करके अलग-अलग लेखों में समझने वाले हैं, ऐसा इसीलिए ताकि इसके काम करने के तरीके को विस्तार से समझ सके। तो आइये फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स (Forward Derivatives) से शुरू करते हैं;

        निम्नलिखित में से कौन-सा डेरिवेटिव बाजार का लाभ नहीं है?

        Key Points व्युत्पन्न

        • एक व्युत्पन्न दो पक्षों के बीच एक अनुबंध है जो एक अंतर्निहित परिसंपत्ति से अपना मूल्य/कीमत प्राप्त डेरिवेटिव और डेरिवेटिव बाजार का परिचय करता है।
        • व्युत्पन्न के सबसे प्रचलित प्रकार फ्यूचर्स, ऑप्शंस, फॉरवर्ड और स्वैप हैं।
        • यह एक वित्तीय साधन है जिसका मूल्य/कीमत अंतर्निहित परिसंपत्तियों द्वारा निर्धारित किया जाता है। प्रारंभ में, एक अंतर्निहित कोष उत्पन्न होता है, जो एकल प्रतिभूति या प्रतिभूतियों के समूह से बना हो सकता है।
        • चूंकि अंतर्निहित परिसंपत्तियों का मूल्य लगातार बदलता रहता है, अंतर्निहित परिसंपत्ति के मूल्य में परिवर्तन की गारंटी होती है।

        Important Points

        व्युत्पन्न बाजार के लाभ

        • उच्च चलनिधि अधिक निवेशकों को शेयर बाजार में भाग लेने के लिए प्रेरित करती है। अंतर्निहित स्टॉक के व्युत्पन्न का परिचय निवेशकों के लिए उपलब्ध अवसर को बढ़ाता है और इसलिए अंतर्निहित स्टॉक की चलनिधि को प्रभावित करता है।
        • व्युत्पन्न का उपयोग कभी-कभी किसी स्थिति को हेज करने के लिए (किसी परिसंपत्ति में प्रतिकूल कदम के जोखिम के खिलाफ बीमा का एक रूप) या अंतर्निहित लिखत में भविष्य के कदमों पर अनुमान लगाने के लिए किया जाता है ।
        • व्युत्पन्न से मूल्य अस्थिरता में कमी होती है।

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        Last updated on Nov 25, 2022

        University Grants Commission (Minimum Standards and Procedures for Award of Ph.D. Degree) Regulations, 2022 notified. As, per the new regulations, candidates with a 4 years Undergraduate degree with a minimum CGPA of 7.5 can enroll for PhD admissions. The UGC NET Final Result for merged cycles of December 2021 and June 2022 was released on 5th November 2022. Along with the results UGC has also released the डेरिवेटिव और डेरिवेटिव बाजार का परिचय UGC NET Cut-Off. With tis, the exam for the merged cycles of Dec 2021 and June 2022 have conclude. The notification for December 2022 is expected to be out soon. The UGC NET CBT exam consists of two papers - Paper I and Paper II. Paper I consists of 50 questions and Paper II consists of 100 questions. By qualifying this exam, candidates will be deemed eligible for JRF and Assistant Professor posts in Universities and Institutes across the country.

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