वैकल्पिक निवेश उत्पाद

Standardization & Quality Control of Iron & Steel
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक है और पूर्ण गुणवत्ता रेजिम की ओर भी अग्रसर हो रहा है। पूर्ण गुणवत्ता रेजिम के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, इस्पात गुणवत्ता नियंत्रण आदेश के दायरे में सभी प्रासंगिक भारतीय इस्पात मानकों को लाना आवश्यक है। भारत में, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) राष्ट्रीय मानक निकाय है, जो राष्ट्रीय मानकों, जिन्हें भारतीय मानक के रूप में जाना जाता है, के वैकल्पिक निवेश उत्पाद निर्माण और कार्यान्वयन के कार्य में संलग्न हैं। भारतीय मानकों को अपनाना या उत्पादों को इनकी प्रकृति के अनुसार आईएसआई चिह्न लगाने के लिए चिह्नित करना तब तक वैकल्पिक है जब तक कि इसे विशिष्ट कानून, नियमों और विनियमों के तहत अनिवार्य नहीं किया जाता है। सार्वजनिक हित में आईएसआई के चिह्नों के उपयोग को अनिवार्य बनाने के लिए केन्द्र सरकार को बीआईएस अधिनियम, 2016 की धारा 16 द्वाराअधिकृत किया गया है।
सरकार उद्योग, उपयोगकर्ताओं और जनसाधारण को गुणवत्ता वाले इस्पात की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए इस्पात गुणवत्ता नियंत्रण आदेश को लागू करती रही है। 2012-2020 (आज तक) के दौरान, सरकार ने 113 कार्बन इस्पात, मिश्र धातु इस्पात और स्टेनलेस स्टील उत्पादों को अधिसूचित किया है ताकि मुख्य रूप से निर्माण, बुनियादी ढांचे, ऑटोमोबाइल और इंजीनियरिंग अनुप्रयोगों के लिए गुणवत्ता वाले इस्पात को उपलब्ध कराया जा सके।
इस्पात मंत्रालय ने 12 मार्च, 2012 की राजपत्र अधिसूचना के तहत दो गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों को अधिसूचित किया था, अर्थात् इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2012 और इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) द्वितीय आदेश, 2012। पहले आदेश में 7 मानकों और दूसरे आदेश में 9 उत्पादों (एक उत्पाद को बाद में वापस ले लिया गया) को अधिसूचित किया गया था और अब इन उत्पादों को अनिवार्य प्रमाणन की आवश्यकता है। 18 दिसंबर, 2015 को इस्पात मंत्रालय ने इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2015 के तहत 15 और उत्पादों को अधिसूचित किया। इसमें इस्पात के बने बुनियादी ढाँचे और इंजीनियरिंग उत्पादों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख चपटे (फ्लैट) और लंबे उत्पादों को शामिल किया गया है। इसके अलावा, सरकार ने 10 जून 2016 को स्टेनलेस स्टील उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2016 नामक एक और गुणवत्ता नियंत्रण आदेश जारी किया, जिसमें 3 भारतीय मानकों के तहत कवर स्टेनलेस स्टील उत्पादों की 3 श्रेणियाँ शामिल की गईं। 13 अगस्त, 2018 को इस्पात मंत्रालय ने पूर्ववर्ती सभी इस्पात गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों को मिला दिया और 15 नए मानकों को एक एकल आदेश, अर्थात् इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2018में शामिल किया, जिसमें 53 इस्पात उत्पादों को कवर किया गया है। 22 जुलाई 2019 को इस्पात मंत्रालय ने एकल आदेश में 13 नए मानकों को जोड़ते हुए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश अर्थात् इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2019 जारी किया, जिसमें कुल 66 इस्पात उत्पादों को कवर किया गया। 14 फरवरी, 2020 को इस्पात मंत्रालय ने एकल आदेश में 25 नए मानकों को जोड़ते हुए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश अर्थात् इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2020 जारी किया, जिसमें कुल 91 इस्पात उत्पादों को कवर किया गया। 27 मई, 2020 को इस्पात वैकल्पिक निवेश उत्पाद मंत्रालय ने एक ही आदेश में 20 नए मानकों को जोड़ते हुए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश अर्थात् इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2020 जारी किया, जिसमें कुल 111 इस्पात उत्पादों को कवर किया गया।
बाद में, इस्पात मंत्रालय ने एक एकल आदेश में 02 नए मानकों को जोड़ा और 17 मई, 2020 को इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2020 अधिसूचित किया, जिसमें 113 इस्पात और इस्पात उत्पाद शामिल हैं। इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) वैकल्पिक निवेश उत्पाद आदेश, 2020 को नीचे दिए गए लिंक पर देखा जा सकता है।
बेटी कमाओ: माइक्रो स्तर की महिला उद्यमियों को सशक्त बनाना
एक उचित समर्थन प्रणाली के साथ, महिलाओं के उद्यमों की संख्या, पैमाने और स्थिरता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है, जिससे 170 मिलियन नौकरियां पैदा हो सकती हैं - जो कि 2030 तक भारत में पैदा होने वाली नई नौकरियों के 25 प्रतिशत से अधिक है।
2015 में, भारत सरकार ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' पहल की शुरुआत की ताकि लैंगिक असमानता को दूर करते हुए लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके| इस पहल के कई सकारात्मक परिणाम निकल कर सामने आए, जिसमें स्कूलों में पंजीकृत लड़कियों की संख्या में उछाल आना और जन्म पर लिंगानुपात में सुधार आना शामिल है।
इसलिए, भारत की बेटियों को बचाने और उन्हें पढ़ाने के साथ-साथ उनका कमाना भी बहुत ज़रूरी है| इस तीसरे पहलू, जिसे 'बेटी कमाओ' का नाम दिया जा सकता है, का अर्थ है कि महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना और उन्हें देश के भीतर एक उद्यमी और रोज़गार प्रदाता के रूप में बढ़ावा देना।
इस स्थिति तक पहुंचने के लिए, सूक्ष्म (माइक्रो) स्तर की महिला उद्यमियों को अपने व्यवसायों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने, बड़े बाजारों तक पहुंचने और वित्त तक आसान पहुंच रखने की आवश्यकता होगी।
महिला उद्यमियों का सशक्तिकरण हमारी आर्थिक प्राथमिकता है जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को काफी लाभ होगा| वर्तमान में भारत में महिला उद्यमियों की संख्या लगभग 137-147 लाख है, यानी भारत के 20 प्रतिशत उद्यम महिलाओं द्वारा नियंत्रित हैं।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, विश्व बैंक ने बेटी नामक एक पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की है, जिसका पूरा नाम बिजनेस एंटरप्राइज टेक्नोलॉजी फॉर इंडियन वूमेन (भारतीय महिलाओं के लिए व्यावसायिक उद्यम प्रौद्योगिकी) है। इसके लिए वह सेवा (सेल्फ एंप्लॉयड विमेंस एसोसिएशन) के साथ मिलकर काम कर रहा है| सेवा असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों का एक संघ है, जो दुनिया के कुछ सबसे बड़े संगठनों में से एक है, जिसका लक्ष्य स्वरोजगार में लगी निम्न आय वर्ग की महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना है।
गुजरात के चार जिलों - मेहसाणा, अहमदाबाद, आनंद और बोडेली - में चल रही इस पायलट परियोजना का मकसद है कि वह मोबाइल आधारित कुछ ऐसे उपकरणों का पता लगा सके, जो इन महिलाओं को बहीखाता बनाने, भंडार और ऋण को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने और अपने उत्पादों की बिक्री हेतु उन्हें व्यवस्थित ढंग से सूचीबद्ध करने में मददगार सिद्ध हो।
सूक्ष्म-स्तर की महिला उद्यमियों को मोबाइल आधारित समाधानों का उपयोग करना सिखाया जा रहा है ताकि उन्हें अपनी बहीखाता पद्धति में सुधार करने, अपनी भंडार और ऋण को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने और बिक्री के लिए अपने उत्पादों को व्यवस्थित रूप से सूचीबद्ध करने में मदद मिल सके।
चूंकि कई सूक्ष्म स्तर की महिला उद्यमी डिजिटल रूप से साक्षर नहीं हैं, इसलिए इस परियोजना का एक और मकसद उन रणनीतियों का पता लगाना है, जो उन्हें इन उपकरणों को अपनाने में सहायता प्रदान कर सके। इन रणनीतियों में डिजिटल उपकरणों के संचालन संबंधी पाठ्यक्रमों का निर्माण, सहकर्मियों के बीच आपसी अनुभवों का आदान-प्रदान और एक-दूसरे की मदद करने के लिए एक नेटवर्क बनाने संबंधी प्रावधान शामिल हैं।
हालांकि इस परियोजना के परिणाम आने अभी बाकी हैं, लेकिन इनमें भाग लेने वाली महिलाएं काफ़ी उत्साहित हैं क्योंकि इसके ज़रिए उन्हें राजस्व, लागत और मुनाफे जैसी बुनियादी व्यावसायिक अवधारणाओं की बेहतर समझ मिली है।
अहमदाबाद जिले की अमीना बेन, जो एक कपड़ा व्यवसायी हैं, का कहना है कि इन उपकरणों की मदद से वह अपनी आय और व्यय पर नज़र रख पा रही हैं। वह बताती हैं, "इससे पहले मैं ये काम नहीं करती थी। अब मैं उन खर्चों को काबू करने में सक्षम हूं, जिन्हें मैं पहले अनदेखा करती थी| इसके कारण मुझे अपने व्यवसाय की स्थिति के बारे में स्पष्ट जानकारी मिलती है। ”
कई महिला उद्यमियों का कहना है कि नए डिजिटल उपकरणों की मदद से वे अपनी आय और व्यय पर बेहतर ढंग से नज़र रख पा रही हैं, जिससे वे अपने व्यवसाय की स्थिति के बारे में सटीक अंदाज़ा लगा सकती हैं|
फिर भी, इस परियोजना को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। छोटे-स्तर की कई महिला कारोबारियों तक स्मार्टफोन की पहुंच नहीं है, जबकि कई महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें नई तकनीकों पर भरोसा नहीं है| ख़ासकर, अपने कारोबार से जुड़ी जानकारियों को लेकर वह इन उपकरणों पर भरोसा नहीं करतीं| इसके अलावा, सुदूर इलाकों में प्रशिक्षकों के पहुंचने में आने वाली बाधाएं, इन महिलाओं को ऐसे उपयोगी उपकरणों को अपनाने से रोक सकती हैं।
हालांकि यह परियोजना अभी पूरी नहीं हुई है, लेकिन उससे हमें कई महत्वपूर्ण सबक मिले हैं, जिनसे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि अलग-अलग पृष्ठभूमि या अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों की महिलाएं इन उपकरणों को कैसे अपनाती हैं या अस्वीकार करती हैं। इन सबकों को अन्य भारतीय राज्यों या देशों में लागू किया जा सकता है या फिर मौजूदा तकनीकों में सुधार करके उनकी पहुंच का विस्तार किया जा सकता है।
एक सबक तो ये है कि हमें ऐसे उपकरणों की ज़रूरत है, जिसमें वित्तीय सुविधाओं (बहीखाता दर्ज करना, व्यय पर नियंत्रण रखना आदि) के साथ-साथ गैर-वित्तीय सुविधाएं भी हों, जो महिलाओं को सोशल मीडिया (जैसे कि ई-कैटालॉग) के माध्यम से अपने उत्पादों को बेचने या समान व्यवसाय से जुड़े अन्य लोगों से संपर्क स्थापित (जैसे कि क्लस्टर नेटवर्किंग उपकरण) करने में मदद कर सकें| अगर इन उपकरणों को स्थानीय भाषाओं में वॉयस-इनेबल्ड (आवाज़ से नियंत्रण की सुविधा) कमांड के साथ उपलब्ध कराया जाता है, तो इससे उन महिलाओं को आसानी होगी, जो डिजिटल उपकरणों के संचालन में कमज़ोर है और जिनके पास सीमित वित्तीय कौशल है।
इसके अलावा, जब महिलाओं को यह बताना ज़रूरी है कि किन चीज़ों ने अन्य लोगों की सहायता की है, ख़ासकर उनके साथियों ने किन नई चीज़ों को अपनाया है, क्योंकि ये जानकर कि लोगों को इन उपकरणों से काफ़ी मदद मिली है, दूसरे भी उनका अनुसरण करने को प्रोत्साहित होंगे।
आने वाले महीनों में, हमें इस परियोजना से ये पता चलेगा कि किन उपकरणों की सहायता से महिलाओं को अपना व्यवसाय बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद मिली और कौन सी रणनीतियां उन्हें इन उपकरणों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने में सबसे ज्यादा प्रभावी सिद्ध हुईं। यह विभिन्न सूक्ष्म उद्योगों वैकल्पिक निवेश उत्पाद के बीच नए उपकरणों को अपनाने की दर और व्यवसायिक परिणामों की तुलना करेगा और हमें ये जानने में मदद करेगा कि महिलाओं ने इन उपकरणों को प्रशिक्षण (प्रत्यक्ष हस्तक्षेप) मिलने के बाद अपनाया है या फिर उनसे जुड़े फायदों के बारे में जानने और समझने के बाद स्वयं उनका प्रयोग करना शुरू किया है।
इस परियोजना से मिलने वाले परिणामों से नीति-निर्माताओं को इन डिजिटल उपकरणों की पहुंच बढ़ाने के बेहतर तरीकों का पता चला चलेगा ताकि महिला उद्यमियों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाया जा सके| समय के साथ, इन आंकड़ों की सहायता से महिला कर्ज़दारों के लिए क्रेडिट स्कोर की एक वैकल्पिक व्यवस्था की स्थापना की जा सकती है, जिससे औपचारिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा|
अभी के लिए, ये जानना सुखद है कि इस परियोजना से अमीना बेन और मीता बेन को अपने कारोबार को सही दिशा में आगे बढ़ाने में मदद मिली है|
बेटी परियोजना में डिसरप्टिव टेक्नोलॉजीज फॉर डेवलपमेंट (डीटी4डी) प्रोग्राम ने निवेश किया है| इस परियोजना का मुख्य साझेदार विश्व बैंक समूह है, जिसमें समूह का कोरिया कार्यालय, सियोल सेंटर ऑफ फाइनेंस एंड इनोवेशन और लैटिन अमेरिका और कैरिबियन का स्पेनिश फंड शामिल हैं|
Standardization & Quality Control of Iron & Steel
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक है और पूर्ण गुणवत्ता रेजिम की ओर भी अग्रसर हो रहा है। पूर्ण गुणवत्ता रेजिम के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, इस्पात गुणवत्ता नियंत्रण आदेश के दायरे में सभी प्रासंगिक भारतीय इस्पात मानकों को लाना आवश्यक है। भारत में, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) राष्ट्रीय मानक निकाय है, जो राष्ट्रीय मानकों, जिन्हें भारतीय मानक के रूप में जाना जाता है, के निर्माण और कार्यान्वयन के कार्य में संलग्न हैं। भारतीय मानकों को अपनाना या उत्पादों को इनकी प्रकृति के अनुसार आईएसआई चिह्न लगाने के लिए चिह्नित करना तब तक वैकल्पिक है जब तक कि इसे विशिष्ट कानून, नियमों और विनियमों के तहत अनिवार्य नहीं किया जाता है। सार्वजनिक हित में आईएसआई के चिह्नों के उपयोग को अनिवार्य बनाने के लिए केन्द्र सरकार को बीआईएस अधिनियम, 2016 की धारा 16 द्वाराअधिकृत किया गया है।
सरकार उद्योग, उपयोगकर्ताओं और जनसाधारण को गुणवत्ता वाले इस्पात की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए इस्पात गुणवत्ता नियंत्रण आदेश को लागू करती रही है। 2012-2020 (आज तक) के दौरान, सरकार ने 113 कार्बन इस्पात, मिश्र धातु इस्पात और स्टेनलेस स्टील उत्पादों को अधिसूचित किया है ताकि मुख्य रूप से निर्माण, बुनियादी ढांचे, ऑटोमोबाइल और इंजीनियरिंग अनुप्रयोगों के लिए गुणवत्ता वाले इस्पात को उपलब्ध कराया जा सके।
इस्पात मंत्रालय ने 12 मार्च, 2012 की राजपत्र अधिसूचना के तहत दो गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों को अधिसूचित किया था, अर्थात् इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2012 और इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) द्वितीय आदेश, 2012। पहले आदेश में 7 मानकों और दूसरे आदेश में 9 उत्पादों (एक उत्पाद को बाद में वापस ले लिया गया) को अधिसूचित किया गया था और अब इन उत्पादों को अनिवार्य प्रमाणन की आवश्यकता है। 18 दिसंबर, 2015 को इस्पात मंत्रालय ने इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2015 के तहत 15 और उत्पादों को अधिसूचित किया। इसमें इस्पात के बने बुनियादी ढाँचे और इंजीनियरिंग उत्पादों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख चपटे (फ्लैट) और लंबे उत्पादों को शामिल किया गया है। इसके अलावा, सरकार ने 10 जून 2016 को स्टेनलेस स्टील उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2016 नामक एक और गुणवत्ता नियंत्रण आदेश जारी किया, जिसमें 3 भारतीय मानकों के तहत कवर स्टेनलेस स्टील उत्पादों की 3 श्रेणियाँ शामिल की गईं। 13 अगस्त, 2018 को इस्पात मंत्रालय ने पूर्ववर्ती सभी इस्पात गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों को मिला दिया और 15 नए मानकों को एक एकल आदेश, अर्थात् इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2018में शामिल किया, जिसमें 53 इस्पात उत्पादों को कवर किया गया है। 22 जुलाई 2019 को इस्पात मंत्रालय ने एकल आदेश में 13 नए मानकों को जोड़ते हुए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश अर्थात् इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2019 जारी किया, जिसमें कुल 66 इस्पात उत्पादों को कवर किया गया। 14 फरवरी, 2020 को इस्पात मंत्रालय ने एकल आदेश में 25 नए मानकों वैकल्पिक निवेश उत्पाद को जोड़ते हुए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश अर्थात् इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2020 जारी किया, जिसमें कुल 91 इस्पात उत्पादों को कवर किया गया। 27 मई, 2020 को इस्पात मंत्रालय ने एक ही आदेश में 20 नए मानकों को जोड़ते हुए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश अर्थात् इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2020 जारी किया, जिसमें कुल 111 इस्पात उत्पादों को कवर किया गया।
बाद में, इस्पात मंत्रालय ने एक एकल आदेश में 02 नए मानकों को जोड़ा और 17 मई, 2020 को इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2020 अधिसूचित किया, जिसमें 113 इस्पात और इस्पात उत्पाद शामिल हैं। इस्पात और इस्पात उत्पाद (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2020 को नीचे दिए गए लिंक पर देखा जा सकता है।
बेटी कमाओ: माइक्रो स्तर की महिला उद्यमियों को सशक्त बनाना
एक उचित समर्थन प्रणाली के साथ, महिलाओं के उद्यमों की संख्या, पैमाने और स्थिरता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है, जिससे 170 मिलियन नौकरियां पैदा हो सकती हैं - जो कि 2030 तक भारत में पैदा होने वाली नई नौकरियों के 25 प्रतिशत से अधिक है।
2015 में, भारत सरकार ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' पहल की शुरुआत की ताकि लैंगिक असमानता को दूर करते हुए लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके| इस पहल के कई सकारात्मक परिणाम निकल कर सामने आए, जिसमें स्कूलों में पंजीकृत लड़कियों की संख्या में उछाल आना और जन्म पर लिंगानुपात में सुधार आना शामिल है।
इसलिए, भारत की बेटियों को बचाने और उन्हें पढ़ाने के साथ-साथ उनका कमाना भी बहुत ज़रूरी है| इस तीसरे पहलू, जिसे 'बेटी कमाओ' का नाम दिया जा सकता है, का अर्थ है कि महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना और उन्हें देश के भीतर एक उद्यमी और रोज़गार प्रदाता के रूप में बढ़ावा देना।
इस स्थिति तक पहुंचने के लिए, सूक्ष्म (माइक्रो) स्तर की महिला उद्यमियों को अपने व्यवसायों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने, बड़े बाजारों तक पहुंचने और वित्त तक आसान पहुंच रखने की आवश्यकता होगी।
महिला उद्यमियों का सशक्तिकरण हमारी आर्थिक प्राथमिकता है जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को काफी लाभ होगा| वर्तमान में भारत में महिला उद्यमियों की संख्या लगभग 137-147 लाख है, यानी भारत के 20 प्रतिशत उद्यम महिलाओं द्वारा नियंत्रित हैं।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, विश्व बैंक ने बेटी नामक एक पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की है, जिसका पूरा नाम बिजनेस एंटरप्राइज टेक्नोलॉजी फॉर इंडियन वूमेन (भारतीय महिलाओं के लिए व्यावसायिक उद्यम प्रौद्योगिकी) है। इसके लिए वह सेवा (सेल्फ एंप्लॉयड विमेंस एसोसिएशन) के साथ मिलकर काम कर रहा है| सेवा असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों का एक संघ है, जो दुनिया के कुछ सबसे बड़े संगठनों में से एक है, जिसका लक्ष्य स्वरोजगार में लगी निम्न आय वर्ग की महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना है।
गुजरात के चार जिलों - मेहसाणा, अहमदाबाद, आनंद और बोडेली - में चल रही इस पायलट परियोजना का मकसद है कि वह मोबाइल आधारित कुछ ऐसे उपकरणों का पता लगा सके, जो इन महिलाओं को बहीखाता बनाने, भंडार और ऋण को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने और अपने उत्पादों की बिक्री हेतु उन्हें व्यवस्थित ढंग से सूचीबद्ध करने में मददगार सिद्ध हो।
सूक्ष्म-स्तर की महिला उद्यमियों को मोबाइल आधारित समाधानों का उपयोग करना सिखाया जा रहा है ताकि उन्हें अपनी बहीखाता पद्धति में सुधार करने, अपनी भंडार और ऋण को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने और बिक्री के लिए अपने उत्पादों को व्यवस्थित रूप से सूचीबद्ध करने में मदद मिल सके।
चूंकि कई सूक्ष्म स्तर की महिला उद्यमी डिजिटल रूप से साक्षर नहीं हैं, इसलिए इस परियोजना का एक और मकसद उन रणनीतियों का पता लगाना है, जो उन्हें इन उपकरणों को अपनाने में सहायता प्रदान कर सके। इन रणनीतियों में डिजिटल उपकरणों के संचालन संबंधी पाठ्यक्रमों का निर्माण, सहकर्मियों के बीच आपसी अनुभवों का आदान-प्रदान और एक-दूसरे की मदद करने के लिए एक नेटवर्क बनाने संबंधी प्रावधान शामिल वैकल्पिक निवेश उत्पाद हैं।
हालांकि इस परियोजना के परिणाम आने अभी बाकी हैं, लेकिन इनमें भाग लेने वाली महिलाएं काफ़ी उत्साहित हैं क्योंकि इसके ज़रिए उन्हें राजस्व, लागत और मुनाफे जैसी बुनियादी व्यावसायिक अवधारणाओं की बेहतर समझ मिली है।
अहमदाबाद जिले की अमीना बेन, जो एक कपड़ा व्यवसायी हैं, का कहना है कि इन उपकरणों की मदद से वह अपनी आय और व्यय पर नज़र रख पा रही हैं। वह बताती हैं, "इससे पहले मैं ये काम नहीं करती थी। अब मैं उन खर्चों को काबू करने में सक्षम हूं, जिन्हें मैं पहले अनदेखा करती थी| इसके कारण मुझे अपने व्यवसाय की स्थिति के बारे में स्पष्ट जानकारी मिलती है। ”
कई महिला उद्यमियों का कहना है कि नए डिजिटल उपकरणों की मदद से वे अपनी आय और व्यय पर बेहतर ढंग से नज़र रख पा रही हैं, जिससे वे अपने व्यवसाय की स्थिति के बारे में सटीक अंदाज़ा लगा सकती हैं|
फिर भी, इस परियोजना को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। छोटे-स्तर की कई महिला कारोबारियों तक स्मार्टफोन की पहुंच नहीं है, जबकि कई महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें नई तकनीकों पर भरोसा नहीं है| ख़ासकर, अपने कारोबार से जुड़ी जानकारियों को लेकर वह इन उपकरणों पर भरोसा नहीं करतीं| इसके अलावा, सुदूर इलाकों में प्रशिक्षकों के पहुंचने में आने वाली बाधाएं, इन महिलाओं को ऐसे उपयोगी उपकरणों को अपनाने से रोक सकती हैं।
हालांकि यह परियोजना अभी पूरी नहीं हुई है, लेकिन उससे हमें कई महत्वपूर्ण सबक मिले हैं, जिनसे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि अलग-अलग पृष्ठभूमि या अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों की महिलाएं इन उपकरणों को कैसे अपनाती हैं या अस्वीकार करती हैं। इन सबकों को अन्य भारतीय राज्यों या देशों में लागू किया जा सकता है या फिर मौजूदा तकनीकों में सुधार करके उनकी पहुंच का विस्तार किया जा सकता है।
एक सबक तो ये है कि हमें ऐसे उपकरणों की ज़रूरत है, जिसमें वित्तीय सुविधाओं (बहीखाता दर्ज करना, व्यय पर नियंत्रण रखना आदि) के साथ-साथ गैर-वित्तीय सुविधाएं भी हों, जो महिलाओं को सोशल मीडिया (जैसे कि ई-कैटालॉग) के माध्यम से अपने उत्पादों को बेचने या समान व्यवसाय से जुड़े अन्य लोगों से संपर्क स्थापित (जैसे कि क्लस्टर नेटवर्किंग उपकरण) करने में मदद कर सकें| अगर इन उपकरणों को स्थानीय भाषाओं में वॉयस-इनेबल्ड (आवाज़ से नियंत्रण की सुविधा) कमांड के साथ उपलब्ध कराया जाता है, तो इससे उन महिलाओं को आसानी होगी, जो डिजिटल उपकरणों के संचालन में कमज़ोर है और जिनके पास सीमित वित्तीय कौशल है।
इसके अलावा, जब महिलाओं को यह बताना ज़रूरी है कि किन चीज़ों ने अन्य लोगों की सहायता की है, ख़ासकर उनके साथियों ने किन नई चीज़ों को अपनाया है, क्योंकि ये जानकर कि लोगों को इन उपकरणों से काफ़ी मदद मिली है, दूसरे भी उनका अनुसरण करने को प्रोत्साहित होंगे।
आने वाले महीनों में, हमें इस परियोजना से ये पता चलेगा कि किन उपकरणों की सहायता से महिलाओं को अपना व्यवसाय बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद मिली और कौन सी रणनीतियां उन्हें इन उपकरणों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने में सबसे ज्यादा प्रभावी सिद्ध हुईं। यह विभिन्न सूक्ष्म उद्योगों के बीच नए उपकरणों को अपनाने की दर और व्यवसायिक परिणामों की तुलना करेगा और हमें ये जानने में मदद करेगा कि महिलाओं ने इन उपकरणों को प्रशिक्षण (प्रत्यक्ष हस्तक्षेप) मिलने के बाद अपनाया है या फिर उनसे जुड़े फायदों के बारे में जानने और समझने के बाद स्वयं उनका प्रयोग करना शुरू किया है।
इस परियोजना से मिलने वाले परिणामों से नीति-निर्माताओं को इन डिजिटल उपकरणों की पहुंच बढ़ाने के बेहतर तरीकों का पता चला चलेगा ताकि महिला उद्यमियों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाया जा सके| समय के साथ, इन आंकड़ों की सहायता से महिला कर्ज़दारों के लिए क्रेडिट स्कोर की एक वैकल्पिक व्यवस्था की स्थापना की जा सकती है, जिससे औपचारिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा|
अभी के लिए, ये जानना सुखद है कि इस परियोजना से अमीना बेन और मीता बेन को अपने कारोबार को सही दिशा में आगे बढ़ाने में मदद मिली है|
बेटी परियोजना में डिसरप्टिव टेक्नोलॉजीज फॉर डेवलपमेंट (डीटी4डी) प्रोग्राम ने निवेश किया है| इस परियोजना का मुख्य साझेदार वैकल्पिक निवेश उत्पाद विश्व बैंक समूह है, जिसमें समूह का कोरिया कार्यालय, सियोल सेंटर ऑफ फाइनेंस एंड इनोवेशन और लैटिन अमेरिका और कैरिबियन का स्पेनिश फंड शामिल हैं|
चमड़ा निर्यात परिषद ने उप्र सरकार से नोएडा के आसपास औद्योगिक पार्क के लिए 100 एकड़ जमीन मांगी
नयी दिल्ली, 25 अगस्त (भाषा) चमड़ा निर्यातकों के संगठन सीएलई ने बुधवार को कहा कि उसने उत्तर प्रदेश सरकार से चप्पल, जूते और सहायक उत्पादों से संबंधित एक औद्योगिक पार्क विकसित करने के लिए नोएडा के आसपास 100 एकड़ जमीन आवंटित करने के लिए कहा है। चमड़ा निर्यात परिषद (सीएलई) के उत्तर क्षेत्रीय अध्यक्ष मोतीलाल सेठी ने कहा कि इस समय सिर्फ नोएडा सालाना निर्यात में 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान देता है। सेठी ने एक बयान में कहा, ‘‘अगर उत्तर प्रदेश सरकार नोएडा के आसपास 100 एकड़ जमीन हासिल करने में उद्योग की मदद करती है, तो वे
चमड़ा निर्यात परिषद (सीएलई) के उत्तर क्षेत्रीय अध्यक्ष मोतीलाल सेठी ने कहा कि इस समय सिर्फ नोएडा सालाना निर्यात में 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान देता है।
सेठी ने एक बयान में कहा, ‘‘अगर उत्तर प्रदेश सरकार नोएडा के आसपास 100 एकड़ जमीन हासिल करने में उद्योग की मदद करती है, तो वे (उद्योग) पार्क में तीन-चार हजार करोड़ रुपये तक निवेश ला सकते हैं और सालाना दो-तीन हजार करोड़ रुपये का निर्यात कर सकते हैं। इससे राज्य के 50,000 लोगों को रोजगार मिल सकता है।’’
इस समय ज्यादातर निर्यात इकाइयां नोएडा के औद्योगिक क्षेत्रों में हैं और वे चारों तरफ बिखरी हुई हैं। उन्होंने कहा कि इससे उनकी विनिर्माण क्षमता और दक्षता में बाधा आती है।
औद्योगिक पार्क के लिए यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक प्राधिकरण (वाईईआईडीए) के सीईओ अरुणवीर सिंह को ज्ञापन दिया गया है।
सीएलई के अध्यक्ष संजय लीखा ने कहा कि फुटवियर, सामान और सहायक उत्पाद क्षेत्र में एक बड़ा अवसर है, और वैश्विक निवेशक भारत को विनिर्माण क्षेत्र में एक वैकल्पिक निवेश गंतव्य के रूप में देख रहे हैं।
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