प्रवृत्ति की रणनीति

एएफसी एशियन कप 2027 की मेजबानी से पीछे हटा भारत
एआईएफएफ ने एक बयान में कहा, ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन की कार्यकारी समिति ने एएफसी एशियन कप 2027 की मेजबानी के लिए अपनी बोली वापस लेने का फैसला किया है। फेडरेशन के रणनीतिक रोडमैप के अनुसार, जिसे इस महीने के अंत में घोषित किया जाएगा, एआईएफएफ प्रबंधन बड़े आयोजनों की मेजबानी के बारे में सोच रहा है। महासंघ की रणनीतिक प्राथमिकताओं में फिट नहीं बैठता है। हमारा वर्तमान ध्यान एएफसी एशियन कप जैसे बड़े आयोजनों की मेजबानी करने से पहले एक उचित फुटबॉल संरचना की नींव बनाने पर है।
17 अक्टूबर, 2022 को अपनी बैठक के दौरान, एएफसी कार्यकारी समिति ने एशियाई कप 2027 की मेजबानी के लिए एआईएफएफ और सऊदी अरब फुटबॉल महासंघ की बोलियों को सूचीबद्ध किया था। एएफसी कांग्रेस को मनामा, बहरीन में फरवरी 2023 में अंतिम मेजबान का चयन करना था।
एआईएफएफ अध्यक्ष कल्याण चौबे ने एक आधिकारिक बयान में कहा,भारत हमेशा बड़े टूर्नामेंटों के लिए एक अद्भुत और कुशल मेजबान रहा है, जो हाल प्रवृत्ति की रणनीति ही में समाप्त हुए फीफा अंडर -17 महिला विश्व कप में काफी हद तक प्रदर्शित हुआ था। हालांकि, कार्यकारी समिति ने फैसला किया है कि वर्तमान में महासंघ की समग्र रणनीति जमीनी स्तर से लेकर युवा विकास तक हर स्तर पर हमारे फुटबॉल को मजबूत करने के मौलिक लक्ष्य पर केंद्रित है।
एआईएफएफ के महासचिव शाजी प्रभाकरन ने कहा, मेजबानी के लिए बड़े संसाधनों की आवश्यकता होती है और कभी-कभी प्रमुख मुद्दों को हमारे ध्यान से दूर करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करती है। अभी, हमारा ध्यान भारतीय फुटबॉल को एक साथ आगे ले जाने पर होना चाहिए।
भारत के हटने के बाद, 2027 में 19वें एएफसी एशियन कप की मेजबानी के लिए सऊदी अरब की उम्मीदवारी ही एएफसी कांग्रेस को विचार-विमर्श के लिए प्रस्तुत की जाएगी।
एएफसी एशियन कप आखिरी बार 2019 में यूएई में आयोजित किया गया था, और कतर 2023 में अगले संस्करण की मेजबानी करेगा।
बता दें कि भारतीय पुरुष फुटबॉल टीम कतर में होने वाले एएफसी एशियन कप 2023 के लिए पहले ही क्वालीफाई कर चुकी है।
निम्नलिखित में से कौन-सी, छात्रों की समस्या को हल करने के लिए एक उपयुक्त रणनीति नहीं है?
Important Points
- समस्याओं को टुकड़ों में तोड़ो।
- विचारों के बारे में बात करने या लिखने के लिए बच्चों को आमंत्रित करें।
Hint
- क्रियात्मक निश्चितता केवल उनके विशिष्ट उपयोग या कार्य के प्रवृत्ति की रणनीति संदर्भ में चीजों को देखने की प्रवृत्ति को संदर्भित करता है।
- यहां, चूंकि किसी विशेष वस्तु का कार्य हमारे दिमाग में तय होता है, इसलिए हम आमतौर पर इसके बाहर नहीं सोचते हैं, जो रचनात्मक विचारों में बाधा डालता है।
इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि छात्रों की समस्या को हल करने के लिए छात्रों की क्रियात्मक निश्चितता एक उपयुक्त रणनीति नहीं है।
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Last updated on Sep 22, 2022
MP TET Revised Result (2020) declared on 3rd October 2022. Earlier, the Professional Examination Board of Madhya Pradesh had declared the MP TET Result 2020 for Primary School Teacher Eligibility Test on 8th August 2022. The MP TET exam was conducted from 5th March to 26th March 2022. Candidates can check out प्रवृत्ति की रणनीति their results from their applicant number/roll number and date of birth. Only candidates with a Diploma/B.Ed degree appeared for the examination. The candidates who will be qualified for the MP TET can earn a salary ranging from INR 2.7 lakhs to INR 3.5 lakhs per annum as a Primary School Teacher
युवाओं की तरफ से ईरान के कट्टरवादी शासन को मिल रही चुनौती, रूस और चीन के साथ लगातार झुकाव बढ़ा रहा देश
Iran Relations With China Russia: एक ईरान और शिया बहुल उसके क्षेत्रीय सहयोगियों द्वारा गठित है, दूसरा अमेरिका, इजरायल और सऊदी अरब द्वारा संचालित ईरान-विरोधी गठजोड़ है। अब ये देश चीन और रूस के साथ झुकाव बढ़ा रहा है।
Edited By: Shilpa @Shilpaa30thakur
Updated on: December 03, 2022 18:41 IST
Image Source : AP ईरान में हुए विरोध प्रदर्शन
ईरान में 16 सितंबर से शुरू हुआ सामाजिक आंदोलन इतना बड़ा है कि विशेषज्ञ सहमे हुए हैं। हर कोई इंतजार कर रहा है। हर कोई मानता है कि ईरान में बंद दरवाजों के पीछे कुछ अप्रत्याशित हो रहा है और प्रदर्शनकारियों का दिखाया गया साहस अभूतपूर्व है। ये प्रदर्शनकारी कौन हैं, उनका ईरान से क्या संबंध है, और संकटग्रस्त शासन की विदेश नीति पर उनकी बगावत का क्या प्रभाव पड़ सकता है?
एक पीढ़ीगत विराम
साल 2000 के आसपास जन्मी विद्रोही पीढ़ी आजादी की भूखी है। यह चाहत इतनी अधिक है कि वे तेहरान में शासन के खिलाफ किसी विद्रोह के परिणामों को मानने के लिए तैयार लगते हैं। प्रदर्शनों में 448 मौतें हो चुकी हैं और लगभग 15,000 गिरफ्तारियां हुई हैं। अपने बड़ों के विपरीत (शासन के खिलाफ विद्रोह के परिणामों से अधिक भयभीत, और जिनके विद्रोह, 2009 के ‘ग्रीन मूवमेंट’ की तरह, अब तक इस्लामी गणराज्य के राजनीतिक ढांचे के भीतर ही थे), यह युवा पीढ़ी अपने आदर्शों के नाम पर भारी कीमत चुकाने के लिए तैयार लगती है।
दुनिया के साथ जुड़े रहने की उनकी क्षमता पर सोशल नेटवर्क का प्रभाव, और दुनिया के अन्य हिस्सों में अपने साथियों को प्राप्त स्वतंत्रता की तुलना में वहां लगा प्रतिबंध निस्संदेह उन कारणों में से एक है। वर्तमान आंदोलन के दीर्घकालीन प्रभावों का अनुमान लगाना अभी कठिन है। हालांकि, यह संभावना है कि ईरान में सामाजिक-राजनीतिक स्थिति बदल जाएगी। विद्रोह का परिमाण ऐसा है कि भले ही इसे पूरी तरह से कुचल दिया गया हो (‘‘ईरानी तियानमेन’’ की तरह कई हजार पीड़ितों की कीमत पर), शासन और आबादी के बीच सह-अस्तित्व प्रवृत्ति की रणनीति के तौर-तरीके महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित होंगे। दिनों दिन ये प्रदर्शन बढ़ते ही जा रहे हैं। पिछली पीढ़ियों के विपरीत, युवा अपने प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने का साहस करते हैं।
खामनेई की वैचारिक विरासत इन युवा वयस्कों के लिए दूर है जो अब सक्रिय जीवन में प्रवेश कर रहे हैं, जो अगर 1979 की क्रांति को छोड़ दें तो न इराक के खिलाफ युद्ध (1980-1988) को जानते हैं, न ही परिवारों की गोलबंदी, शहरों पर बमबारी, और न ही उस पर हुए भयंकर दमन को।
धर्म से विरक्ति
एक दूसरी प्रवृत्ति इस पीढ़ीगत बदलाव को पुष्ट करती है। जैसा कि 1990 के दशक में फ्रांसीसी इस्लामविद ओलिवियर रॉय ने भविष्यवाणी की थी, तेहरान में धर्म के आधार पर शासन की स्थापना ने, विरोधाभासी रूप से, ईरानी समाज के धर्मनिरपेक्ष होने की प्रक्रिया को गति देने में योगदान दिया है। ईरान की विदेश नीति का ‘‘एशियाईकरण’’ ईरान में समाज-सत्ता के संबंध के इस विकास को इसके भीतर भू-राजनीतिक संदर्भ को ध्यान में रखे बिना इसके उचित माप में पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता है। हालांकि, विदेश नीति के मामलों में ईरान का रुख कई वर्षों से ‘‘एशियाईकरण’’ की ओर रहा है। मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक स्थिति दो विरोधी ध्रुवों के इर्द-गिर्द केंद्रित है। एक ईरान और शिया बहुल उसके क्षेत्रीय सहयोगियों द्वारा गठित है, दूसरा अमेरिका, इजरायल और सऊदी अरब द्वारा संचालित ईरान-विरोधी गठजोड़ है। ‘‘एशियाईकरण’’ की यह प्रक्रिया ईरान की शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की सदस्यता तक पहुंच गई है।
हालांकि, इराक और लेबनान में मिलिशिया की उपस्थिति स्थापित करने और सीरिया में बशर अल-असद के शासन और यमन में हूती विद्रोहियों के साथ गठबंधन करने से परे, इस रणनीति से ईरान को अपेक्षित आर्थिक लाभ नहीं मिला है। ये सभी देश दिवालिया हो गए हैं या बर्बाद हो गए हैं, और यह भी संभावना नहीं है कि मध्यम अवधि में यह गठजोड़ कोई महत्वपूर्ण वर्चस्व प्राप्त करेगा। रूसी सेना द्वारा यूक्रेन में ईरान-निर्मित ड्रोन का इस्तेमाल यह साबित करता है कि दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग उन्नत स्तर पर है, और यह भी कि तेहरान और मॉस्को में मौजूद शक्तियां चीन की शह पर पश्चिम से सामना करने के नाम पर एक ही दिशा में आगे बढ़ रही हैं। यह नई यूरेशियन गतिविधि भी ईरान द्वारा महाद्वीपीय पैमाने पर अन्य महत्वपूर्ण भागीदारों, जैसे कि तुर्की, भारत, पाकिस्तान और सोवियत गणराज्यों के साथ राजनयिक पहलों के प्रसार को जन्म दे रही है।
प्रमुख चीनी (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, बीआरआई) और रूसी-भारतीय (अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, आईएनएसटीसी) बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में ईरान का जुड़ाव देश के विकास को अंतर-महाद्वीपीय कनेक्टिविटी के नेटवर्क से जोड़ने की ईरानी नेताओं की इच्छा को दर्शाता है, जो धीरे-धीरे पश्चिमी नियंत्रण के बाहर आकार ले रही है। अलगाव के चार दशकों का सामना करने के बाद भी ईरानी शासन, जो कभी पूर्व के साथ पश्चिम के लिए ‘‘अछूत’’ था, वर्तमान भू-राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर यूरेशियन महाद्वीप के लिए एक सम्मानजनक और योग्य भागीदार साबित हो रहा है।
चीनी शैली के सामाजिक नियंत्रण की ओर बढ़ रहा है?
लेकिन इस भू-राजनीतिक बदलाव और विरोध आंदोलन के बीच क्या संबंध हैं? अभी दोनों गतिविधियां अलग-अलग तरीके से उभर रही हैं। विद्रोह एक पीढ़ीगत और धर्मनिरपेक्ष बदलाव के दौर से उभरा है। इसके विपरीत, ‘‘पूर्व की ओर देखना’’ नीति शासन के लिए एक प्राथमिकता है, जिसकी चीन और रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने में रुचि है। इसके साथ नयी प्रौद्योगिकियों (कृत्रिम बुद्धिमत्ता, चेहरा पहचान, एल्गोरिदम) के क्षेत्र में इन देशों के साथ सहयोग बढ़ने की भी संभावना है। चीनी-शैली के सामाजिक नियंत्रण की हवा ईरान पर मंडरा रही है। तथ्य यह है कि सामाजिक नियंत्रण की एक प्रणाली चाहे वह कितनी भी प्रभावी क्यों न हो, केवल तभी प्रभावी हो सकती है, जब वह जनसंख्या के भय को जगाए। हालांकि ईरान में डर की दीवार धीरे-धीरे दरकते नजर आ रही है।
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हैलीकॉप्टर पैरेंटिंग: बच्चे पर माता-पिता के मंडराते रहने की प्रवृत्ति खतरनाक
बच्चों पर अधिक नियंत्रण रखने से उनके व्यवहार से लेकर आईक्यू लेवल तक पर बुरा असर पड़ता है। अगर आप भी अपने बच्चे पर ज़रूरत से ज़्यादा अंकुश लगाते हैं, तो जल्दी ही आपको अपने व्यवहार में बदलाव लाने की आवश्यकता है। माता-पिता बच्चों को यदि अति नियंत्रित करते हैं तो बच्चों में भविष्य में कई प्रकार की मनोवैज्ञानिक समस्याओं का खतरा बना रहता है। ओवर कंट्रोलिंग बच्चों के विकास को प्रभावित करती है। कुछ बच्चों में आईक्यू लेवल कम हो जाता है तो कुछ के आत्मविश्वास में कमी आ जाती है। कुछ उदाहरणों के ज़रिए इसे समझते हैं।
सवालों के जवाब ढूंढने दें
मान लीजिए कि आपके बच्चे से घर आए मेहमान ने सवाल किया। ऐसे में माता-पिता बच्चे के बोलने से पहले ही सवाल का जवाब दे देते हैं। इससे बच्चे के मानसिक विकास पर असर पड़ता है। वह सवालों के जवाब देने से घबराने लगता है और भविष्य में अपना आत्मविश्वास खो बैठता है। उसे माता-पिता के द्वारा सवालों के जवाब देने की आदत जो हो जाती है। इसलिए बच्चे से पूछे जाने वाले सवालों के जवाब ख़ुद देने की कोशिश न करें, बल्कि बच्चे को ही देने दें। शुरुआत में हो सकता है वो थोड़ा हिचकिचाए, जवाब ढूंढने में थोड़ा समय ले या आपसे अपेक्षा रखे कि आप जवाब दें। लेकिन आपको उसकी मदद नहीं करनी है। आपकी थोड़ी-सी भी मदद उसके भविष्य के लिए मुश्किल ही पैदा करेगी।
बचपन न खोने दें
कुछ अभिभावक बच्चों को अपने हिसाब से नियंत्रित करते हैं। उदाहरण के लिए, बच्चा 100 में से 99 अंक लाए इसकेे लिए माता-पिता उसके पीछे पड़ जाते हैं। फिर चाहे कोचिंग लगानी पड़े या एक्स्ट्रा क्लास लगानी पड़े। वे बच्चे पर नंबर लाने का दबाव बनाए रखते हैं। इससे बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर काफ़ी असर पड़ता है। यहां अभिभावकों को ये समझने की ज़रूरत है कि नंबर के पीछे भागने में बच्चा बचपन की कई ऐसी चीज़ें खो देगा जो उसके विकास के लिए ज़रूरी हैं। जैसे दोस्तों के साथ खेलना, नए प्रयोग करना, घूमना-फिरना आदि। पढ़ाई ज़रूरी है लेकिन उसे इतना हावी भी न होने दें कि वो बच्चे का बचपन ही छीन ले।
घर घुस्सू न बनाएं
कई अभिभावक बच्चों को बाहर खेलने नहीं जाने देते। उन्हें लगता है कि बाहर खेलने या दोस्तों से मिलने-जुलने से बच्चे का पढ़ाई से ध्यान हटेगा या फिर प्रवृत्ति की रणनीति वो बिगड़ जाएगा। माता-पिता के इस तरह के व्यवहार के कारण बच्चे घर घुस्सू बन जाते हैं। बच्चे को खेलने दें, हां आप उसकी प्रवृत्ति की रणनीति गतिविधियों पर नज़र रखें और उसके हिसाब से ही खेल निर्धारित करें। मान लीजिए आपका बच्चा भागदौड़ में अच्छा है, बहुत फुर्तीला है तो उसे क्रिकेट या फुटबॉल खिलाएं। इसी तरह उसे दौड़, बैडमिंटन, टेनिस सहित स्थानीय खेलों के लिए प्रेरित करें। बच्चों को सिर्फ़ घर में रखेंगे तो वे बाहरी लोगों से मिलने-जुलने में या सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होने से कतराने लगेंगे। उनका यही व्यवहार भविष्य में भी बना रहेगा।
पूछताछ की भी सीमा हो
कुछ माता-पिता तो अपने बच्चे को इस कारण स्वतंत्रता नहीं देते, क्योंकि वे डरते हैं कि इससे बच्चे बिगड़ जाएंगे। बच्चों पर भरोसा करें, उन्हें हर समय शक की निगाहों से न देखें। कहीं भी बाहर जाने या घर आने में देर हो जाने पर जबरन पूछताछ न करें। बच्चों पर भरोसा जताएं तभी बच्चे भी आप पर भरोसा करेंगे और आपसे कुछ छिपाएंगे नहीं। हमेशा शक करने या पूछताछ करने से बच्चे बातें छुपाने के आदि हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि वो सच भी बोलेंगे तो भी घरवाले उनकी बात पर यक़ीन नहीं करेंगे। फिर वे झूठ बोलकर माता-पिता की पूछताछ से बचने लगते हैं। इसलिए जो सवाल वाजिब हैं या ज़रूरी है वो ज़रूर पूछें, लेकिन एक दायरे में, ताकि उन्हें ये न लगे कि शक किया जा रहा है।
अधिक नियंत्रण से क्या समस्याएं आती हैं, जानिए
हर समय बच्चे को कंट्रोल करने के कारण उसका आत्मविश्वास कम होने लगता है और भय विकसित होता है।
अधिक नियंत्रण में रहने के कारण बच्चा आगे प्रवृत्ति की रणनीति चलकर आक्रामक या विद्रोही प्रवृत्ति का हो सकता है।
बच्चा आपकी मारपीट या डांट से बचने के लिए झूठ बोलने और बातंे छिपाने जैसी आदतें अपनाने लगता है।
माता-पिता द्वारा हमेशा मदद करने या साथ रहने के कारण बच्चा आत्मनिर्भर बनने के बजाय निर्भर बना रहता है। हर कार्य के पहले वो साथ ढूंढता है या अकेले कार्य करने में घबराता है।
बच्चा माता-पिता से जो सीखता है वही अपनी जीवनशैली में भी अपनाता है। और ख़ुद जब बड़े होकर पैरेंट्स बनने की बारी आती है तब वह वही सब दुहराता है।
अभिभावकों के लिए सुझाव
बच्चों से हर चीज़ में सर्वश्रेष्ठ होने की उम्मीद न करें। वे अभी सीखने के लेवल पर हैं तो अभी उन्हें सीखने और समझने का मौक़ा दें।
बच्चों से खुलकर बातचीत करें। उनसे दोस्ताना व्यवहार रखें जिससे वे आपसे हर बात बिना झिझके साझा कर सकें।
बच्चों के साथ बैठकर बातचीत करें और किसी भी समस्या का समाधान एक साथ मिलकर करें। इससे बच्चों को भी सीखने को मिलेगा और वे किसी भी समस्या के आने पर उसका समाधान कैसे करना है ये भी जान पाएंगे।
उनके दोस्तों को लेकर ताने न मारें या तुलना न करें। ऐसा करने से बच्चे दोस्ती करने से दूर भागते हैं। उनके दोस्तों को घर बुलाएं और साथ समय बिताने दें। इससे वे आप पर भरोसा करेंगे और आपका रिश्ता भी मज़बूत होगा।